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________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य ऊर्ध्वग्रैवेयके श्रेष्ठे अहमिन्द्रोऽभवद्देयः = = अन्ते सन्यासविधिना देहत्यागं विधाय सः । प्रीतिंकरविमानके ।।१५।। नूनं देवगणार्चितः । एकत्रिंशत्सागरायुर्हस्तद्वयशरीरभृत् ।। १६ ।। एकत्रिंशत्सहस्रोक्तान्व्यतीत्यासौ च वत्सरान् । जग्राह मानसाहार समन्ताद्देवसंस्तुतः १।१७ । । अन्वयार्थ - अन्ते = भुज्यमान आयु के अन्त में, सः वह मुनिराज, सन्यासविधिना = सन्यास मरण की विधि से, देहत्यागं शरीर का त्याग विधाय = करके, ऊर्ध्व ग्रैवेयके = ऊर्ध्व ग्रैवेयक में श्रेष्ठे = सर्वोत्तम प्रीतिंकरविमानके = प्रीतिंकर नामक विमान में, अहमिन्द्रः = अहमिन्द्र देवः = देव, अभवत् हुये। (तत्र = वहाँ), नूनं निश्चित ही, देवगणार्चितः = देवों के समूह से पूजित, असौ वह एकत्रिंशत्सागरायुः = इकतीस सागर की आयु वाला हस्तद्वयशरीरभृत् = दो हाथ शरीर वाला (आसीत् था), समन्तात् = चारों तरफ, देवसंस्तुतः = देवों से स्तुति किया जाता हुआ वह देव, एकत्रिंशत्सहस्रोक्तान् = उक्त इकतीस हजार, वत्सरान् = वर्षो को, व्यतीत्य = बिताकर, मानसाहारं इच्छा से ही अमृत आहार को, जग्राह ग्रहण करता था । = = २५० = = - श्लोकार्थ - भुज्यमान आयु के अन्तिम समय में वे मुनिराज सन्यासमरण की विधि से शरीर का त्याग करके ऊर्ध्वग्रैवेयक में स्थित सर्वोत्तम प्रीतिकर विमान में अहमिन्द्र देव हुये। वहाँ वह देवों के समूहों से पूजित रहते थे उनकी आयु इकतीस सागर की और शरीर दो हाथ प्रमाण था । इकतीस हजार वर्ष बिताकर वह देव इच्छा से ही अमृत आहार ग्रहण कर लेता था तथा चारों तरफ से देवों द्वारा संस्तुत होता था । षट्पञ्चाशच्चतुःशत्य सहितान्वासरान् प्रभुः । नीत्योच्छ्रयासविधानं स कृतवान्ब्रह्मचर्यभृत् ||१८|| अन्वयार्थ – सः = वह, ब्रह्मचर्यभृत् = ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला, प्रभुः = समर्थ देव, षट्पञ्चाशच्चतुःशत्यसहितान् = चार सौ
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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