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________________ १६८ अन्वयार्थ श्लोकार्थ इत्थं स्वसुकृतैस्तत्र राजा अवर्णनीयं सौख्यं स ले - — - = इत्थं इस प्रकार, तंत्र = वहाँ, राज्यपदे = राज्य के पद पर, स्थितः स्थित रहते हुये स राजा उस राजा ने, स्वसुकृतैः = अपने सत्कर्मों से, (च = और) बहुविभूतिभिः = पुण्योदय से प्राप्त विपुल वैभव द्वारा, अवर्णनीयं वर्णनातीत, सौख्यं = सुख को लेभे सुख को लेभे पाया । = बहुविभूतिभिः । राज्यपदे स्थितः ।।६।। इस प्रकार उस सुसीमानगर में राज्य पद पर रहते हुये उस राजा ने अपने सत्कर्मों और पुण्योदय से प्राप्त विपुल वैभव से अवर्णनीय सुख प्राप्त किया । = एकदा स सुखासीनः सिंहपीठोपरि प्रभुः । अनोदितं धनुर्दृष्ट्या विलीनं तत्क्षणे किल ॥१०॥ विरक्तोऽभूदसारं हि संसारमनुमन्य सः । समाहूय स्वपुत्रं यै सुमित्राख्यं महामतिम् ।।११।। प्रबोध्य तं स्वराज्येऽस्मै संस्थाप्य विधिवन्नृपः । उत्कृष्टपदसंलब्ध्यै वनयात्रां चकार सः ।।१२।। अन्वयार्थ एकदा एक बार, सिंहपीठो परि सिंहपीठ के ऊपर. सुखासीनः = सुख से बैठा हुआ, सः = वह, प्रभुः = राजा स्वामी, अभोदितं आकाश में उत्पन्न हुये, धनुः = धनुष को, दृष्ट्वा : देखकर, ( च = और), तत्क्षणे = उसी क्षण, किल सचमुच विलीनं = नष्ट (धनुः दृष्ट्वा धनुष को देखकर), विरक्तः विरक्त, अभूत् हो गया, संसारं संसार को, असारं साररहित, अनुमन्य मानकर हि = ही, स उस, नृपः = राजा ने, महामतिं = महान् बुद्धि वाले, सुमित्राख्यं = सुमित्र नामक स्वपुत्रं अपने बेटे को समाहूय = CF = 7 1 - बुलाकर, तं = उसको प्रबोध्य= संबोधित करके, स्वराज्ये = = अपने राज्य में विधिवत् = विधानपूर्वक, संस्थाप्य = स्थापित करके, अस्मै इस मुक्ति रूप, उत्कृष्टपदसंलब्ध्यै = सर्वोत्कृष्ट मोक्षस्थान को पाने के लिये, वनयात्रां = वन की ओर यात्रा, चकार = की। श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = = = = = -
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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