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तृतीया
ने, स्वदिव्यनादं = अपनी दिव्यध्वनि को, समहरत = बंद कर दिया। च = और, तदा = तब, मुनिवरैः सह = मुनिराजों के साथ, सम्मेददत्तधवलकूटं = सम्मेदशिखर की दत्तधवलकूट को, संप्राप्य - प्राप्त करके. तत्र = वहाँ, वै = ही, (असौ = उन), शुद्धात्मा = शुद्धात्मा ने, एकम् = एक, मास = माह तक, उवास = निवास किया। च = और, सहस्रमुनिभिः सह = एक हजार मुनियों के साथ, देवाधिदेवः = देवाधिदेव संभवनाथ तीर्थकर ने, वैशाखकृष्णषष्ठ्या = वैशाख कृष्ण षष्ठी के दिन, परमदुर्लभां = परमदुर्लभ, मुक्तिं = मुक्ति को, सम्प्राप = प्राप्त किया। तत्पश्चात् = उसके बाद, अभिनन्दनपर्यन्तं = चौथे तीर्थकर अभिनन्दन नाथ के समय तक, संख्याप्रमाणतः = संख्या प्रमाण की अपेक्षा, नव = नौ, कोटिकोट्यः = कोड़ा कोड़ी, एवं च = और, द्विसप्ततिः = बहत्तर, लक्षात् = लाख से अधिक = अधिक समसहस्राणि = सात हजार. उत्तरम् = आगे, द्विचत्वारिंशत् -- बयालीस, शतानि = सौ, पंच = पांच, मुनयः = मुनिराज, साना = हैं, ये = जिन्होंने, तत्रैव = उस दत्तधवलकूट पर ही, सिद्धता = सिद्धत्व को, गताः = प्राप्त किया। तत् = इसलिये, अस्य = इस, दत्तधवलस्य = दशधवल कट की. सम्यक - सच्ची, यात्राविधायिनः = यात्रा रूप वन्दना करने वाले की, तिर्यनरकगत्योः = तिर्यञ्च और नरक गति का, नाशः = अभाय, निश्चितं = सुनिश्चित ही, भवति = होता है, च = और. द्विचत्वारिंशत् = बयालीस.. लक्षप्रोषधजं = लाख प्रोषधोपवास से जनित, फलं = फल,
उदभूत = उत्पन्न हो जाता है। श्लोकार्थ - उन संभवनाथ नामक पूर्ण वीतरागी भगवान् ने भरत क्षेत्र के
अनेक देशों में धर्म का उपदेश किया। तथा एक माह आयु शेष रहने पर उन्होंने धर्मोपदेशों को रोककर अपनी दिव्यध्यनि को बंद कर दिया । और तभी मुनिवरों के साथ सम्मेदशिखर के दत्तधवलकूट को प्राप्तकर नहीं उन्होंने एक मास तक