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________________ तृतीया -- होयी जाती हुई. शिविता ... साल की पर. मारय = चढ़कर देवकृतोत्सवः = देवताओं ने जिसके लिये उत्सव किया है ऐसा वह, गीर्वाणगणसंस्तुतः = देवताओं के समूह से स्तुति किया जाता हुआ, तपोवनम् = तपोवन के, उपागच्छत् = पास पहुंच गया। सहेतुकाभिधारण्ये = सहेतुक नामक वन में, मार्गे मासि = मार्गशीर्ष माह में, सिते दले = शुक्ल पक्ष में, पंचदश्यां = पूणिमा के दिन, सः = उस, अनाकुलः = आकुलता शून्य राजा ने, तपोदीक्षां = तपश्चरण के लिये दीक्षा को, जग्राह = ग्रहण कर लिया। सहौः = हजारों, भूपालैः = राजाओं के, सह = साथ, दीक्षितः = दीक्षा लेने वाला, अयं = यह राजा, सहस्रगुः :- सहस्रगु, (प्रोक्तः = कहा गया)। श्लोकार्थ - तथा सिद्धि पाने के लिये स्वयं ही अद्भुत शोभा से सम्पन्न और राजाओं. विद्याधरों व देवों द्वारा वहन की जाती हुयी पालकी पर चढ़कर देवताओं द्वारा किये गये उत्सव वाला वह राजा तपोवन के पास पहुंच गया। वहाँ सहेतुक वन में मार्गशीर्ष शुक्ला पूर्णिमा के दिन अरुकुलचित्त वाले उस राजा ने तप करने के लिये दीक्षा ले ली। एक हजार राजाओं के साथ दीक्षित होने वाला यह सहस्रगु कहलाया। महाग्रतानि पञ्चेति धृत्वा तेजोऽर्कसन्निभम्। मनःपर्ययबोधादयो बभूव किल तत्क्षणात् ।।४६।। अन्वयार्थ - इति= इस प्रकार दीक्षा लेने के क्रम में, पञ्च = पांच, महाव्रतानि = महाव्रतों को. (च = और), अर्कसन्निभम् :- सूर्य की कान्ति के समान, तेजः = तेज को, धृत्वा = धारण करके, किल = निश्चित ही, तत्क्षणात् = उसी क्षण, (स: = वह मुनिराज), मनःपर्ययबोधादयः = मनःपर्ययज्ञान के धनी, बभूव = हो गये। श्लोकार्थ - दीक्षा लेने के क्रम में पांच महाव्रतों को और सूर्य के तेज के समान तेज को धारण करके वे जल्दी ही मन:पर्ययज्ञान के धनी हो गये।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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