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बहुरि जैसे मृत्तिकाका ? खा, कणा, कोंडी, कपाल आदि पर्यायभेवनिकरि अनुभवन करते 5
सन्ते अन्य अन्यपणा भूतार्थ है सत्यार्थ है । तौऊ सर्वपर्यायभेदनितें नाहीं चिगता भेदरूप न होता
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15 जो एक मृत्तिकास्वभाव ताकू लेकरि अनुभवन करते सन्ते पर्यायभेद अभूतार्थ है असत्यार्थ है। फ्र
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तैसे आत्माकूं नारक आदि पर्यायभेदनिकरि अनुभवन करते सन्ते पर्यायनिका और औरपणारूप अन्यपणा भूतार्थ है सत्यार्थ है । तौऊ सर्व पर्यायभेदनितें नाहीं चिगता एक चैतन्याकार आत्म
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5 स्वभावकूं लेकर अनुभवन करते सन्ते अन्यपणा अभूतार्य है असत्यार्थ है । बहुरि जैसें समुद्रकूं 5 वृद्धि हानि अवस्थाकरि अनुभवन करते सन्ते अनितपणा जो अनिश्चितपणा सो भूतार्थ है । तौऊ 5 नित्य ठहरचाहुवा समुद्रस्वभावकू लेकर अनुभवन करते सन्ते अनियतपणा अभूतार्थ है असत्यार्थ है । तैसें आत्मा वृद्धिहानिपर्यायभेद निकार अनुभवन करते सन्ते अनियतपणा भूतार्थ है सत्यार्थ है । तौऊ नित्य ठहर बाहुवा निश्चल आत्माका स्वभावकूं लेकर अनुभवन करते सन्ते अनियतपणा 5 अभूतार्थ है असत्यार्थ है ।
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बहुरि जैसे सुवर्णकू चीकणा, भारी, पीला आदि गुणरूप भेदनिकरि अनुभवन करते सन्ते 5 विशेषषणा भूतार्थ है सत्यार्थ है । तौऊ विलय भये हैं समस्त विशेष जामैं ऐसा स्वर्णस्वभावकूं लेकर अनुभवन करते सन्ते विशेषपणा अभूतार्थ है असत्यार्थ है । तैसें आत्माकूं ज्ञानदर्शन 5 आदि गुणरूप भेदनिकरि अनुभवन करते सन्ते विशेषपणा भूतार्थ है सत्यार्थ है । तौऊ विलय भये हैं समस्त विशेष जामें ऐसा चैतन्यमात्र आत्मस्वभावकूं लेकर अनुभवन करते सन्ते विशेषपण अभूतार्थ है असत्यार्थ है । बहुरि जैसे जलकै अभि है निमित्त जाकूं ऐसा जो उष्ण मिल्या 5 तप्तपणारूप अवस्था तिसकरि अनुभवन करते सन्ते जलके उष्णपणारूप संयुक्तपणा भूतार्थ है सत्यर्थ है । तौऊ एकान्ततें शीतल जो जलका स्वभाव ताकू लेकर अनुभवन करते सन्ते 5 उष्णसंयुक्तपणा अभूतार्थ है असत्यार्थ है । तैसें आत्माकै कर्म है निमित्त जाऊं ऐसा मोहसमा - 卐 हितपणारूप अवस्था तिसकरि अनुभवन करते सन्ते संयुक्तपणा भूतार्थ है सत्यार्थ । तोऊ
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