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________________ समय ६३० ககககககககககககக 卐 卐 卐 卐 卐 卐 卐 हैं । सो मोक्षका इच्छक पुरुष यह ही प्रार्थना करे है, जो मेरा पूर्णस्वभाव आत्मा उदय होऊ 5 अन्यभाव बंधमोक्षमार्गको कथारूप हैं, तिनिकरि कहा प्रयोजन है ? अब कहे हैं, जो नयनिकरि आत्मा साधिये है, परंतु नयहीपरि दृष्टि रहें तौ नयनिके परस्पर विरोध भी है । तातें मैं फ फ नयनिकूं अविरोधकरि आत्मा अनुभॐ हौं । वसन्ततिलका छन्दः फफफफफफफफफफफफफ 卐 फ 卐 वसन्ततिलका छन्दः स्याद्वाददीपितलसन्महसि प्रकाशे शुद्धस्वभावमहिमन्युदित भयो । किं बन्धमोक्षपथपातिभिरत्यभाषैर्नित्योदयः परमयं स्फुरतु स्वभावः ||२३|| अर्थ--मोवि स्याद्वादकर दीपित कहिये प्रकाशरूप भया है ललाट करता तेजःपुंज क जामैं, बहुरि शुद्धस्वभावकी है महिमा जामैं ऐसा ज्ञानप्रकाश उदय होतें बन्धमोक्षके मार्ग पटकनेवाले जे अन्यभाव तिनिकरि कहा साध्य है ? मेरे तौ केवल अनंतचतुष्ट्यरूप यह अपना स्वभाव सो निरंतर उदयरूप भया स्फुरायमान होऊ । भावार्थ- स्याद्वादकरि यथार्थ आत्मज्ञान भये पीछे याका फल पूर्ण आत्माका प्रकट होना चित्रात्मशक्तिसमुदायमयोऽयमात्मा सद्यः प्रणम्यति नयेक्षणखण्ड्यमानः । तस्मादखण्डम निराकृतखण्डमेकमेकान्तशान्तमचलं चिदहं महोऽस्मि ||२४|| अर्थ- यह आत्मा है सो चित्र कहिये अनेक प्रकार जे अपनी शक्ति तिनिके समुदायमय 卐 卐 फ है। सो नयनिकी दृष्टिकरि भेदरूप किया हुवा तत्काल खंडखंडरूप होय नाशकं प्राप्त होय है । तातें मैं मेरा आत्मा ऐसे अनुभव हो, जो मै चेतन्यमात्र मह वस्तू हौं । सो कैसा हौं ? नाहीं क 5 निराकरण कीये हैं खंड जामैं तौऊ खंड भेदरहित अखंड हौं, एक हौं, बहुरि एकांतशांतरूप हौं । जा कर्मका उदयका लेश नाहीं ऐसा शांतभावमय हौं । अर अचल हौं, कर्मका उदयका चलाया चलूं नाहीं हौं । फ..
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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