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समय
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हैं । सो मोक्षका इच्छक पुरुष यह ही प्रार्थना करे है, जो मेरा पूर्णस्वभाव आत्मा उदय होऊ 5 अन्यभाव बंधमोक्षमार्गको कथारूप हैं, तिनिकरि कहा प्रयोजन है ? अब कहे हैं, जो नयनिकरि आत्मा साधिये है, परंतु नयहीपरि दृष्टि रहें तौ नयनिके परस्पर विरोध भी है । तातें मैं फ फ नयनिकूं अविरोधकरि आत्मा अनुभॐ हौं ।
वसन्ततिलका छन्दः
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वसन्ततिलका छन्दः
स्याद्वाददीपितलसन्महसि प्रकाशे शुद्धस्वभावमहिमन्युदित भयो ।
किं बन्धमोक्षपथपातिभिरत्यभाषैर्नित्योदयः परमयं स्फुरतु स्वभावः ||२३||
अर्थ--मोवि स्याद्वादकर दीपित कहिये प्रकाशरूप भया है ललाट करता तेजःपुंज क
जामैं, बहुरि शुद्धस्वभावकी है महिमा जामैं ऐसा ज्ञानप्रकाश उदय होतें बन्धमोक्षके मार्ग पटकनेवाले जे अन्यभाव तिनिकरि कहा साध्य है ? मेरे तौ केवल अनंतचतुष्ट्यरूप यह अपना स्वभाव सो निरंतर उदयरूप भया स्फुरायमान होऊ ।
भावार्थ- स्याद्वादकरि यथार्थ आत्मज्ञान भये पीछे याका फल पूर्ण आत्माका प्रकट होना
चित्रात्मशक्तिसमुदायमयोऽयमात्मा सद्यः प्रणम्यति नयेक्षणखण्ड्यमानः । तस्मादखण्डम निराकृतखण्डमेकमेकान्तशान्तमचलं चिदहं महोऽस्मि ||२४||
अर्थ- यह आत्मा है सो चित्र कहिये अनेक प्रकार जे अपनी शक्ति तिनिके समुदायमय
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फ है। सो नयनिकी दृष्टिकरि भेदरूप किया हुवा तत्काल खंडखंडरूप होय नाशकं प्राप्त होय है । तातें मैं मेरा आत्मा ऐसे अनुभव हो, जो मै चेतन्यमात्र मह वस्तू हौं । सो कैसा हौं ? नाहीं क 5 निराकरण कीये हैं खंड जामैं तौऊ खंड भेदरहित अखंड हौं, एक हौं, बहुरि एकांतशांतरूप हौं ।
जा कर्मका उदयका लेश नाहीं ऐसा शांतभावमय हौं । अर अचल हौं, कर्मका उदयका चलाया चलूं नाहीं हौं ।
फ..