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भावार्थ-एकांती तौ परभाव निजभाव जानि बाह्यवस्तूहीविर्षे विश्राम करता संता __आस्माका नाश करे है । बहुरि स्याद्वादी अपना ज्ञानभाव यथापि ज्ञेयाकार होय है, तथापि ज्ञानमहीकू अपना भाव जानता संता आपाका नाश नाहीं करे है। यह अपना भावकी अपेक्षा + 1- अस्तित्त्रका भंग है । पुनः--
अध्यास्यात्मनि सर्वभावभवनं शुद्धस्वभावच्युतः सर्ववाप्यनियारितो गनभयः स्वैरं पशुः क्रीडति। ' ___ म्याहादी तु विशुद्ध एव लसति स्वस्य स्वभाष भरादारूढः परमावभावविरहच्यालोकनि कम्पितः ॥१३॥
अर्थ-पशु अज्ञानी एकांतवादी है सो अपने आत्माविर्षे सर्वज्ञेयपदार्थनिका होना निश्चय : प्रकरि अर शुद्धज्ञानस्वभावते च्युत भया संता सर्वपदार्थनिविर्षे निःशंक वर्जनारहित स्वेच्छाचारी .. - भया क्रीडा करे है । अपना भावका लोप करे है । बहुरि स्याद्वादी है सो अपना ही भावविर्षे ।
सर्वथा आरूढ भया परभावका अपने भावविर्षे अभावका प्रकटपणा है ताकरि निश्चय भया शुद्ध , पज ही शोभायमान है। " भावार्थ-एकांती तौ परभावन्निकू आपा जानि अपने शुद्धस्वभावसू च्युत भया सर्वत्र + निशंक स्वेच्छातें प्रवते है । बहुरि स्याद्वादी परभावनिकू जाने है तोऊ तिनित न्यारा अपना आ
स्माकू शुद्धज्ञानस्वभाव अनुभवतासंता सोभे है। यह परभाव अपेक्षा नास्तित्वका भंग है । पुनः--卐 卐 प्रादुर्भावविराममुद्रितबहद्ज्ञानांशनानात्मना निझनाक्षणभङ्गसङ्गपतितः प्रायः पशुनश्यति ।
स्याद्वादी तु चिदात्मना परिमृशंश्चिद्वस्तु नित्योदितं टोत्कीर्णवनस्वभावमहिमज्ञानं भवन् जीवति ॥१४॥ 卐 अर्थ-पशु अज्ञानी एकांतवादी है सो उत्पादव्ययकरि लक्षित प्राप्त होता जो ज्ञान ताके .. अंशनिकरि नानास्वरूपका निर्णयका ज्ञानते क्षणभंगका संगमें पढथा बाहुल्यपणे आपाका नाश
करे है । बहुरि स्याद्वादी है सो चैतन्यस्वरूपकरि चैतन्यवस्तूकू नित्य उदयरूप अनुभवता संता टंकोत्कीर्णधनस्वभाव है महिमा जाकी ऐसा ज्ञानरूप होता संता जोवे है । आपाका नाश नाहीं ।
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