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________________ 2 फफफफफफफफफफफ 卐 फ 卐 卐 卐 खण्ड खण्ड बिगडी है शक्ति जाकी ऐसा भया संता समस्तपर्णेकरि तूटता खण्ड खण्ड होता आप नाश प्राप्त होय है । बहुरि अनेकांतका जाननेवाला है सो सदा उदयरूप जो ज्ञानका एक5 द्रव्यपणा तिसकरि ज्ञयनिके आकार होनेतें भया जो सर्वथा भेदका भ्रम ताहि दूरि करता संता निर्वाध अनुभवन स्वरूप ज्ञानकूं एक देखे हैं । 卐 अर्थ - पशु कहिये अज्ञानी सर्वथा एकांतवादी है सो ज्ञानका स्वभाव बाह्य ज्ञेयपदार्थका ग्रहण रूप है are भरतें समस्त अनेक उदय भये प्रकट ज्ञानमें आये जे ज्ञयनिके आकार तिनिकरि फ 卐 शार्दूलविक्रीडित छन्दः बाह्यार्थग्रहणस्वभावभरतो विष्वग्विचित्रोल्लसज्ञेयाकारविशीर्णशक्तिरभितस्त्र, ट्यन्पशुर्नश्यति । एकद्रव्यतया सदाऽप्युदितया भेदभ्रमं ध्वंसयन्नेकं ज्ञानमबाधितानुभवनं पश्यत्यनेकान्तवित् ||४|| Te फ्र 5. भावार्थ- जो वस्तु अपना स्वरूप तत्स्वरूप है सो ही वस्तु परका स्वरूप अतत्स्वरूप है फ्र ऐसें स्याद्वादी देखे है । सो ज्ञान अपना स्वरूपतें तत्स्वरूप है । तैसें ही पर ज्ञेयनिका आकाररूप भया है तोऊ तिनितें भिन्न है । तातें असत्स्वरूप है। अर एकांतवादी समस्तवस्तुरूप ज्ञानकूं मानि आपा तिनि ज्ञेयमयी मानि अज्ञानी होय पशुकी ज्यों स्वच्छंद प्रवर्तें है । ऐसा 5 स्वरूपका भंग है । पुनः फ्र 卐 5 फफफफफफफफफफ 卐 भावार्थ - ज्ञान है सो ज्ञयनिके आकार परिणमनेतें अनेक दीखे है । ताकूं सर्वथा एकांतवादी 5 अनेक खण्डखण्डरूप देखता संता ज्ञानमय जो आया ताका नाश करे है । अर स्वाद्वादी ज्ञानकुं 卐 ज्ञेयाकार भया है तौऊ सदा उदयरूप द्रव्यपणाकरि एक देखे है । यह एकस्वरूप भंग है । पुनः-ज्ञेयाकारकलङ्कमेचकचिति प्रक्षालनं कल्पयन्नेकाकारचिकीर्षया स्फुटमपि ज्ञानं पशुर्नेच्छति । वैश्येऽप्यविचित्रतामुपगतं ज्ञानं स्वतः क्षालितं पर्यायस्तदनेकतां परिमृशन् पश्यत्यनेकान्तवित् ||५|| अर्थ -- पशु अज्ञानी सर्वथा एकांतवादी है । सो ज्ञयनिके आकारनिकरि कलंककरि अनेका- 5 काररूप मलिन जो चैतन्य ताविर्षे एक चैतन्यकामात्र आकार करनेकी इच्छा करि प्रक्षालन कहिये L
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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