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________________ मा बहुरि जिस काल अर्थका आलंबनका कालहीविष ज्ञानका सत्तक ग्रहणकरि एकांती आत्मा-" 卐 का नाश करे है तिस काल परके कालकरि असत्त्वकू प्रकट करता संता अनेकांत ही नाश ॥ 1- होने न दे है।१०। ___ बहुरि जिस काल ज्ञायमान जानने में आवता जो परभाव ताके परिणमनके आकार दिखता; जो ज्ञायकभाव ताकू परभावकरि ग्रहणकरि अर ज्ञानभावकू एकांती नाशकू प्राप्त करे है, .. तिस काल स्वभावकरि ज्ञानका सत्वकू प्रकट करता संता अनेकांत ही ज्ञानकू जीवावे है नाश 卐 न होने दे है।। बहरि जिस काल एकांती है सो ऐसा मनावे है 'जो सर्व भाव है ते मैं हौं ऐसें परभावक ज्ञायकपणाकरि अंगीकार करि अर आत्माका नाश करे है, तिस काल परभावनिकरि ज्ञानर का असत्वकू प्रकट करता संता अनेकांत है सो ही आत्माका नाश न होने दे है ।१२। बहुरि जिस काल अनित्य जे ज्ञानके विशेष तिनिकरि खंडित भया जो नित्यज्ञानसामान्य,म र सो नाशकू प्राप्त होय है ऐसा एकांत स्था, तिस काल ज्ञानका सामान्यरूपकरि नित्यपणाकू " प्रकट करता संता अनेकांत है सो ही नाश करने न दे है ।१३। । 卐 बहुरि जिस काल नित्य जो ज्ञानसामान्य ताका ग्रहण करनेके अर्थि अनित्य जे ज्ञानके __ विशेष तिनिका त्यागकरि एकांत है सो आत्मा नोशा प्राप्त करे है, तिस काल ज्ञानके विशेष-" प्र रूपकरि अनित्यपणाकू प्रकट करता संता अनेकांत है सो ही तित आत्माकू जोवावे है, नाश' - होने न दे है ।१४॥ - ऐसे चौदह भंगनिकरि ज्ञानमात्र आत्माकू एकांतकरि तौ आत्माका अभाव होना अर 1+ अनेकांतकरि आत्माका ठहरना दिखाया। तहां तत् अतत्, अर एक अनेक, नित्य अनित्य, ऐसैं “तो छह भंग भये । अर सत्त्व असत्त्वके द्रव्य क्षेत्र काल भावकरि आठ भंग किये, ऐसे चौदह 9 भंग जानने अब इनिके कलशरूप १४ काव्य हैं, सो कहिये हैं।
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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