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________________ कम + + प्राभूत जो समयपाहुडमिणं पठिणय अच्छतच्चदो णाएं। अच्छे ठाहिदि चेदा सो पावदि उत्तमं सुक्खं ॥१०७॥ यः समयसारप्राभृतमिदं पठित्वाऽर्थतत्वतो ज्ञात्वा । अर्थे स्थास्यति चेतयिता स प्राप्नोत्युत्तमं सीख्यम् ॥१७॥ पर आत्मख्यातिः–यः खलु समयसारभूतस्य भवतः परमात्मनोऽस्य विश्वप्रकाशकत्वेन विश्वसमयस्य प्रतिपादनात "स्वयं शब्दब्रह्मायमाणं शास्त्रमिदमधीत्य विश्वप्रकाशनसमर्थपरमार्थभृतचित्प्रकाशरूपपरमात्मानं निश्चियन् अर्थतम्तव- ॥ तश्च परिच्छिद्य अस्यैवार्थभूतं भगवति एकस्मिन् पूर्णविज्ञानधने परमब्रह्मणि सारं भेण स्थास्यति चयिता, स नाक्षा"सत्क्षणविजभमाणचिदेकरसनिर्भवस्वभावसुस्थितनिराकुसात्मरूयतया परमानंदशब्दवाच्यमुत्तममनाकुरवलक्षणं सौख्यं ॥ जस्वयमय भविष्यतीति । . अर्थ—जो चेतयिता पुरुष भव्यजीव इस समयप्राभूतङ पढिकरि अर अर्थते अर तत्त्वतें जानिकार अर याका अर्थविर्षे तिष्ठेगा सो उत्तमसोख्वस्वरुप होयगा। - टीका-जो चेतयिता भव्यपुरुष आत्मा निश्चयकरि इस शास्त्रकू पढिकरि अर समस्तपदार्थ"निका प्रकाशनेविचे समर्थ ऐसा परमार्थ सूत चैतन्यप्रकाशरूप आत्माकू निश्चय करता संता के अर्थतें अर यथार्थ तत्वते जाणि, अर याहीका अर्थभूत जो भगवान् एक पूर्णविज्ञानधनस्वरूप परब्रह्म ताविर्षे सर्वप्रकार उद्यम आरंभ करिकै र तिष्ठेगा सो पुरुष, उत्तम अनाकुलता है की जलक्षण जाका ऐसे सुखरूप खयमेव आप ही होपगा। कैसा है यह शास्त्र समयसारभूत भगवान् । परमात्मा ? समस्तका प्रकाशनेवालापणाकरि जाकू विश्वसमय कहिये, ताक प्रकाशनेते आप स्यं शब्दब्रह्मसारिखा है। बहुरि जित सुख प्राप्त झोयगा सो सुख कैसा है ? तत्काल उदय- -रूप प्रगट होता एक चैतन्यरसकरि भरथा अपने स्वभावविर्षे भलै प्रकार तिष्ठया निराकुल "आत्मस्वरूपपणाकरि परमानंद शब्दकरि कहने योग्य है। 5555555
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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