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________________ 555 955 जफ़ व्यावहारिकः पुनर्नयो द्वे अपि लिंगे भणति मोक्षपथे। निश्चयनयस्तु नेच्छति मोक्षपथे सर्वलिंगानि ॥१०६।। आत्मख्याति:-यः खलु श्रमणश्रमणोपासकभेदेन द्विविधं द्रव्यलिंगं भवति मोक्षमार्ग इति प्ररूपणप्रकारः स मा केवलं व्यवहार एव न परमार्थस्तस्य स्वयमसुद्धद्रव्यानुभवनात्मकत्वे सति परमार्थत्वाभावात् । यदेव श्रमणश्रमणोपासक-म 1- विकल्पानतिक्रांतं दृशिममित्तिमा गुरझानमेवल पैक मिति निम्नुपसंचेतनं परमार्थः, तस्यैव स्वयं शुद्धद्रव्यानुभवा. आत्मकत्वे सनि परमार्थकत्वात् ततो ये व्यवहारमंत्र परमार्थबुद्धया चेतयंते ते समयलारमेव न संचंतयते । य एव परमार्थ-卐 5 बुद्धया चेतयंते ते एष समयसारं चतयंते ।। ___ अर्थ-व्यवहारनय है सो तौ मुनि श्रावकके भेदकरि दोय प्रकार लिंग हैं तिल दोऊहीक ' मोक्षमार्ग कहे है । बहुरि निश्चयनय है सो सर्व ही लिंगकू मोक्षमार्गविर्षे नाही इष्ट करे है। . टीका--निश्चयकरि श्रमण कहिये मुनि अर श्रमणके उपासक कहिये श्रावक ऐसे दोय भेदकरि लिंग दोय प्रकार हैं। सो दोऊ ही लिंग मोक्षमार्ग है, ऐसा प्ररूपणका प्रकार है, सो 卐 केवल व्यवहार ही है। परामर्थ नाहीं है । जाते इस व्यवहारनयके स्वयं अशुदव्यका अनुभवस्वरूपपणा होते सतै परमार्थपणाका अभाव है। बहुरि जो श्रमण अर श्रमगका उपासकके भेदतें दूरिवर्ती दर्शनज्ञानचारित्रकी प्रवृत्तिमात्र निर्मलज्ञान ही एक है, ऐसा निर्मल अनुभवन सो परमार्थ है, सोही मोक्षमार्ग है । जाते ऐसें ज्ञानहीके स्वयं शुद्रवरूप होनेका स्वरूपपणा 卐 होते संत परमार्थपणा है। तातै जे पुरुष केवल व्यवहारहीकू परमार्थबुद्धिकरि अनुभवे हैं तेज .. समयसारकू नाहीं चेते हैं, नाही अनुभवे हैं । बहुरि जे परमार्थहोकू परमार्थको बुद्धि करि अनुप्रभवे हैं, ते ही तिस सययसारकू अनुभवे हैं। ज भावार्थ-व्यवहारनयका तो विषय भेदरूप है । सो अशुद्ध द्रव्य है । सो परमार्थ नाही। " अर निश्चयनयका विषय अभेदरूप शुद्धद्रव्य है सो परमार्थ है । सो जे व्यवहारहीकू निश्चय मानि प्रवर्ते हैं तिनिकै समयसारकी प्राप्ति नाहीं है। अर जे परमार्थ परमार्थ जाने हैं।
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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