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शार्दूलविक्रीडितछन्दः एका मोक्षपथो य एष नियतो हम्ज्ञप्तिवृष्यात्मकस्तष स्थितिमति यस्तमनिशं ध्यायेश्च तं चेतति । तस्मिन्नेव निरंतरं विहरति द्रव्यान्तराण्यस्पृशन् सोऽवश्यं समयस्य सारमचिरान्नित्योदयं विन्दति ॥४७॥
अर्थ----जो दर्शनशानचारित्रस्वरूप यह एक मोक्षका मार्ग है सो जो पुरुष तिस ही विर्षे स्थितीकू प्राप्त होय है तिष्ठे है, बहुरि जो तिसहीकू निरंतर ध्यावे है, बहुरि जो तिसहीकू चेते " 卐 है, अनुभवे है, बहुरि जो तिसहीविर्षे निरंतर विहार करे है प्रवर्ते है, कैसा भया संता ? अन्य ) .. द्रव्यनिकू नाहीं स्पर्शता संता, सो पुरुष थोरे ही कालमें अवश्य समयसार जो परमात्माका रूप 卐 जाका नित्य उदय रहै ऐसा अनुभवे है पावे है। .. भावार्थ-निश्चयमोक्षमार्ग के सेक्नेत थोरे ही कालमें मोक्षकी प्राप्ति होय यह नियम है। " आगे कहे हैं, जो द्रव्यलिंगहीकू मोक्षमार्ग मानि ताधि ममत्वभाव राखे हैं ते मोक्ष नाहीं पावे हैं। ताकी सूचनिकाका काव्य है।
शार्दूलविक्रीडित छन्दः ये त्वेनं परिहृत्य संवृत्तिपथप्रस्थापितेनात्मना लिङ्गै द्रव्यमये च हन्ति ममतां तच्चावबोधच्युताः।
नित्योद्योतमखण्डमेकमतुलालोक स्वभावप्रभागाम्भारं समयप सारममलं नाद्यापि पश्यन्ति ने ॥४८॥
अर्थ-जे पुरुष यह पूर्वोक्त परमार्थस्वरूप मोक्षमार्ग ताकू छोडिकरि अर व्यवहार मार्गविर्षे 5 - वलाया स्थाप्या जो अपना आत्मा ताहीकरि, द्रव्यमय जो यह बाझलिंग भेष ताविर्षे ममता करे ..
है; जाने है, कि यह हो हम मोक्ष प्राप्त करेगा; ते पुरुष तत्त्वके यथार्थ ज्ञानते रहित भये संते" मुनिपद लीया है तोऊ इस समयसारकू नाही अवलोकन करे हैं. नाहीं पावै हैं । कैसा है समय,
सार? नित्य है उदय जाका, कोई प्रतिपक्षी होय ताका उदयका विच्छेद न करि सके है । बहुरि 卐 कैसा है ? अखंड है, जामें अन्य ज्ञेय आदिके निमित्ततें खंड नाहीं होय है । बहुरि कैसा है ?' .. एक है, पर्यायनिकरि अनेक अवस्था होय है, तोऊ एकरूपपणाकू नाहीं छोडे है। बहुरि कैसा
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