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________________ 卐 फ्र फ्रफ़ फफफफफ 卐 卐 अनुष्टुप्छन्दः एवं ज्ञानस्य शुद्धस्य देंड एव न विद्यते । ततो देहमयं ज्ञातुर्न लिंग मोक्षकारणम् ||४५ || अर्थ - एवं कहिये पूर्वोक्तप्रकारकरि शुद्धज्ञानकै देह ही नाहीं विद्यमान है । तातें ज्ञाताके देहमय लिंग है, चिन्ह है, भेष है सो मोक्षका कारण नाहीं हैं। अत्र इस अर्थ गाथाकरि कहे। 卐 हैं | गाथा 卐 卐 卐 फफफफफफफफफफ 卐 卐 पाखंडियलिंगाणि य हिलिंगाणिय बहुप्पयाराणि । वित्तुं वदंति मूढा लिंगमिण मोक्खमग्गोत्ति ॥१००॥ णय होदि मोक्खमग्गो लिंगं जं देहणिम्ममा अरिहा । 卐 卐 लिंगं मुइत्तु दंसणणाणचरिताणि सेवति ॥ १०१ ॥ पाखंडिलिंगानि च गृहलिंगानि च बहुप्रकाराणि । गृहीत्वा वदति मूढा लिंगमिदं मोक्षमार्ग इति ॥ १०० ॥ 卐 न तु भवति मोक्षमार्गो लिंगं यह हनैर्ममका अर्हतः । लिंगं मुक्त्वा दर्शनज्ञानचरित्राणि सेवते ॥ १०१ ॥ 卐 आत्मख्यातिः --- केचिद् द्रव्यलिंगमज्ञानेन मोक्षमार्ग मन्यमानाः संतो मोहेन द्रव्यलिंगमेयोपाददते । तदप्यनुप-क 5 पन्नं सर्वेषामेव भगवतामर्हदं वानां शुद्धज्ञानमयत्ये सति द्रव्य लिंगाश्रयभूतशरीरममकारत्यागात् । तदाश्रितद्रव्यलिंगत्या गेन दर्शनज्ञानचरित्राणां मोक्षमार्गत्वेनोपासनस्य दर्शनात् । 卐 卐 अथैतदेव साधयति--- 卐 अर्थ - पाखंडिलिंग बहुरि गृहिलिंग ऐसे बहुत प्रकार बाह्यलिंग हैं। तिनिकूं ग्रहणकरि मूढ अज्ञानी जन ऐसें कहे हैं, यह लिंग है सो ही मोक्षका मार्ग है। आचार्य कहे हैं लिंग मोक्षका 5 मा ५
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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