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________________ # टीका-ज्ञानतें अन्य जो अन्यभाव ताविर्षे ऐसें चेतै अनुभवै माने, यह जो मैं हौं, सो "अज्ञानचेतना है । सो दोय प्रकार है। कर्मचेतना कर्मफलचेतना । तहां ज्ञानसिवाय अन्य भावनिक 卐 विर्षे ऐसे चेते अनुभवै माने, जो याकू मैं करू हो, सो तो कर्मचेतना है। बहुरि ज्ञानसिवाय .. अन्य भावनिविर्षे एसें चेतै अनुभवै मानै जो याकू में वेद हौं, भोगऊ हो, सो कर्मफल चेतना है। " ॐ सो यह दोऊ ही दोऊ प्रकारकी अज्ञानचेतना है । सो संसारका बीज है। जाते संसारका बीज + - अष्टप्रकार ज्ञानावरण आदि कर्म है। ताका यह अज्ञानचेतना बीज है । यातें कर्म उपजे है बंधे " है । तातें जो मोक्षका अर्थी पुरुष है ताकरि अज्ञानवेतनाका नाशके अर्थी समस्तकको संन्यास-卐 म भावना कहिये पटकी देणेको भावनाकू नवायकरे नृत्य करायकार अर फेरि सना फलकी संन्यासकी भावना त्यागकी भावनाकू नचायकरि अर अपना स्वभावभूत जो ज्ञानवती भगवती 卐 एक ज्ञानचेतना ताहोकू निरंतर नृत्य करावने योग्य है। तहां प्रथम हो साल के संन्यासको 1. भावनाकू नृत्य करावे हैं । ताका कलशरूप काव्य है। आयछिन्द: कृतकारितानुमन स्त्रिकाल विषयं मनोवचनकायैः । परिहत्य कर्म सत्रं परमं ने कार्यमलम् ॥३२॥ ___ अर्थ-अतीत अनागत वर्तमानकालसंबंधी सर्व ही कर्म है ताही कृत, कारित, अनुमोदना, अर मन वचन कायकरि परिहारकरि छोडिकरि उत्कृष्ट निष्कर्म अवस्था है, ताही मैं अवलंबन करौ ।। हों। ऐसें सर्व कर्मका त्याग करनेवाला ज्ञानी प्रतिज्ञा करें है। अब सर्वकर्मका त्याग करनेका । 卐 कृत कारित अनुमोदना मन वचन कायकरि गुणचास भंग होय है। तहाँ अतीतकालसंबंधी कर्मके ++ .. त्याग करनेकू प्रतिक्रमण कहिये । ताके प्रथम हो गुणचास भंग करि कहे हैं। तहां टीकामैं " + संस्कृतपाठ ऐसा है 卐 यदहमकार्य यदचीकरं यत्कुर्व तमध्यन्यं समन्वनामिषं मनसा वाचा च कावेन चेति तन्मिध्या मे दुष्कृतमिति १ .. " यदहमकार्ष यदचीकरं यत्कुर्व तमप्यन्यं समन्वज्ञासिपं मनसा वाचा च तन्मे मिथ्या दुकृतमिति २ यदहमकार्ष यद 5 55 $ 55 जम
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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