SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 550
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ + + + + | 5 55 5 h + + + ज्ञान चारित्र आदि गुण धाते जाय । अर राग द्वेष मोह जीवहीके अस्तित्वमैं भज्ञानते उपो " हैं। जब अज्ञानका अभाव होय तब सम्यग्दृष्टि होय तब नाहीं उपजे है। ऐसे होते शुद्धद्रव्यके। 卐 दृष्टीमैं पुद्गलविय भी राग द्वेष मोह नाहीं सम्यग्दृष्टि जीवविष भी नाहीं। ऐसे दोऊ ही विर्षे __ न होते ए नाही ही हैं अर पर्यायदृष्टीमैं जीवके अज्ञान अवस्थामें हैं ऐसा जानना । अब इस 卐 अर्थका कलशरूप काव्य कहे हैं। मन्दाक्रान्ताछन्दः रागद्वं पाविह हि भवति ज्ञानमज्ञानभावात् ती पस्तुत्व प्राणतशा ५मानी न किञ्चित् ।। सम्पादृष्टिः क्षपयतु ततस्तन्यदृष्टया स्फुटतो शानज्योतिजलति सहजं येन पूर्णाचलानिः ॥२॥ ___ अर्थ-इस आत्मावि ज्ञान हे सोही अज्ञान भावते राग द्वेष रूप परिणमे है। बहुरि ते .卐 रागादिक वस्तुपणावि स्थायिष्टिकरि देखे हुये किछू भी नाहीं हैं, द्रव्यरूप न्यारे वस्तु नाहीं है। तातें आचार्य प्रेरणा करे हैं, जो सम्यग्दृष्टि पुरुष है सो तत्वदृष्टिकरि तिनिकुं प्रगट देखि अर क्षेपो 3 नाश करो। ज्यौं स्वाभाविक ज्ञानज्योतिपूर्ण है प्रकाशरूप अचल दीति जाकी ऐसी देदीप्यमान॥ प्रकाशै। ___भावार्थ-राग द्वेष न्यारा ही तो द्रव्य नाहीं । जीवके अज्ञान भावतें होय है। तातें सम्य- पर दृष्टि होय तत्वदृष्टिकरि देखिये, किछू भी वस्तु नाहीं ऐसे देखे। घातिकमका नाश होय केवल-1 ज्ञान उपजे है। आगे कहे हैं, जो अन्य द्रव्यकरि अन्य द्रव्यके गुण नाहीं उपजाइये है, ताकी" + सूचनिकाका काव्य है ___ मालिनीछन्दः रागढ़ पोत्पादकं तस्वदृष्टया नान्यद् द्रव्यं वीक्ष्यते किश्चनापि । सर्वद्रव्योत्पनिरन्तकास्ति म्यतात्यन्तं स्वस्वभादेन यस्मात् ॥२६॥ 卐 अर्थ-राग द्वेषका उपजाक्नेवाला तत्वदृष्टिकरि देखिये तब अन्य द्रव्य किछू भी नाहीं देखिये। म + मज + ++ +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy