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कहे हैं - इस लोकवि सेटिका है सो श्वेतगुणकरि भरथा द्रव्य है, 5 ताकू लोक कली खडी पांडू इत्यादि कहे हैं। ताकै व्यवहारकरि श्वेत करनेयोग्य मंदिर कुटी 5 भिती आदि परद्रव्य हैं । अब इहां सेटिकाकै अर परद्रव्यकै दोऊके परमार्थकरि संबंध कहा है ? सो विचारिये हैं । श्वेत करनेयोग्य कुटी आदि परद्रव्य है, ताकी श्वेश करनेवाली लेटिका किछु है कि नाहीं है ? जो ऐसें मानिये, जो सेटिका कुटयादि परद्रव्यकी है, तौ ऐसा न्याय है-जो 卐 15 जाका जो होय, सो तिसस्वरूप ही होय । जैसें आत्माका ज्ञान होता संता आत्मा ही स्वरूप है | ऐसा परमार्थरूप तत्त्वसंबंधी जीवता विद्यमान होते, सेटिका कुटी आविकी होती संती कुटी 5 आदिका स्वरूप होय - तिसतें न्यारा द्रव्य न होय । ऐसें होते संते सेटिकाका निजद्रव्यका तौ उच्छेद होय - अभाव होय, कुटी आदिक ही एकद्रव्य ठहरै । सौ दूसरा द्रव्यका उच्छेद नाहीं 5 है । जातैं द्रव्यका अन्यद्रव्य होना तो पहले ही प्रतिषेधरूप कहि आये हैं, अन्य द्रव्यका पलटि करि अन्य द्रव्य होय नाहीं । तातें यह निश्चय भया - जो सेटिका कुटी आदि परद्रव्यकी फ नाहीं है ।
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इहां पूछे है सो सेटिका कुटी आदिकी नाहीं है, तो कौनकी सेटिका है ? ताका उत्तरजो सेटिका सेटिकाही की है। तहां फेरि पूछे है जो वह अन्यसेटिका कौनसी है ? जिस सेटिकाकी यह सेटिका है। ताका उत्तर - जो सेटिकातें अन्य दूजा सेटिका तौ नाहीं है । तौ कहा है ? afare स्वस्वामिभाव है। सो ये अंश हैं, तिनिकै अन्यपणा है । तहां कहे हैं जो इहां निश्चय 5
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aur fat स्वामिअंशका व्यवहारकरि कहा साध्य है ? किछू भी नाहीं । तौ यह ठहरी
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फ जो सेटिका अन्य काहूकी भी नाही । सेटिका है सो सेटिका ही है ऐसा निश्चय है। सो जैसा यह दृष्टांत है, तैसा ही यह दातिक अर्थ है । तहां इस लोकविषै प्रथम तो चेतयिता कहिये चेतनेवाला' आत्मा है, सो ज्ञानगुणकरि भरथा है स्वभाव जाका ऐसा द्रव्य है । ताकै
हारकरि ज्ञेय कहिये जानने योग्य पुद्गल आदिक परद्रव्य है, सो इहां तिस आत्माका अर
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