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________________ 卐 + अनुभवे है । तातें इहां जो पुरुष भूतार्थ जो शुद्धनय ताकू आश्रय करे हैं, तेही सम्यगवलोकन प करते संते सम्यग्दृष्टि होय हैं अन्य जे अशुद्धनयकू सर्वथा आश्रय करे हैं, ते सम्यग्दृष्टि न होय" प्रा 卐 हैं। इहां शुद्धनयके कतकनिर्मलीस्थानीयपणा है । तातें कर्मत भिन्न आत्माके देखनेवालेनिकरिक 1- व्यवहारनय अंगीकार नाहीं करना। भावार्थ-इझ जावहाननगर्नू अभूतार्थ कहा । अर शुद्धनयकू भूतार्थ का । सो जाका विषय卐 विद्यमान नाहीं होय, असत्यार्थ होय ताकू अभूतार्थ कहिये । सो ऐसा आशय जानना-जो,. शुद्धनयका विषय अभेद एकाकाररूप नित्यद्रव्य है। याकी दृष्टिमैं भेद दीखे नाहीं। याते दृष्टिमैं , 卐 भेद अविद्यमान असत्यार्थही कहिये । ऐसा तो नाहीं, जो, भेदरूप किछु वस्तुही नाहीं। ऐसा.. मानिये तो वेदांतमतवाले जैसे भेदरूप अनित्यकू देखि अवस्तु मायास्वरूप कहे हैं अर सर्वव्यापक एक अभेद नित्य शुद्धब्रह्मकू वस्तु कहे हैं, तेसै ठहरै। तात सर्वथा एकांतशुद्धनयकी पक्षरूप, मिय्यादृष्टिकाही प्रसंग आवै है । तातें जिनवाणी स्याद्वाद है, प्रयोजनके वशतें नयकू मुख्य" गौणकरी कहे है । तातें इहां ऐसा समझना जो भेदरूप व्यवहारकी तो प्राणीनिकै अनादिहीते॥ पक्ष है। तथा याका उपदेश भी बाहुल्यताकरि सर्वही प्राणी परस्पर करे हैं । जिनवाणीमें व्यव हारका उपदेश शुद्धनयका हस्तावलम्ब ज़ानि बहुच कीया है परंतु ताका फल संसार ही है। 3 बहुरि शुद्धनयकी पक्ष कदे आई नाही, तथा याका उपदेश भी विरला है। तातै श्री गुरु उपकारी या शुद्धनयका ग्रहणका फल मोक्ष जाणि याहीका उपदेश प्रधानकरि दिया है, जो शुद्धनय - भूतार्थ है सत्यार्थ है याकू आश्रयकीये सम्यग्दृष्टि होय है । याकू विनाजाने व्यवहारमैं मग्न है: 4 जेतें:आत्माका ज्ञान श्रद्धानरूप निश्चय सम्यक्त्व नाहीं होय है ऐसा जानना। आगें कहे हैं जो 1यह व्यवहारनय है सो भी केईकनिकू कोई कालविर्षे प्रयोजनवान् है, सर्वथाही निषेधने योग्य - नाहीं है । जातें ऐसा उपदेश है । गाथा 5.5 $ $ $$ $ 5 乐乐 乐乐 乐 क卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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