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________________ फ्रफ़ फ्र शार्दूलविक्रीडितच्छन्दः 卐 कर्मेव प्रवित्तर्क्य कर्तृ हतकैः क्षिप्त्वाऽऽत्मनः कर्तृतां कर्त्ताऽऽत्मैव कथञ्चिदित्यचलिता कथित श्रुतिः कोपिता । तेषामुद्धतमोहमुद्रितधियां बोधस्य संशुध्दये स्वाद्वादप्रतिबन्धलब्ध विजया वस्तुस्थितिः स्तूयते ॥ १२ ॥ फ ६ अर्थ-ई आत्मा घातक सर्वथा एकान्तवादी तिनिनें कर्महीकूं कती विचार अर आत्माके 卐 卐 कतीपणा दूरि करि अर यह आत्मा कथंचित् कती है ऐसें कहनेवाली निर्वाध श्रुति कहिये 5 जिनेश्वरकी वाणी है, ताकूं कोप उपजाया, ऐसे सर्वथा एकान्तवादी हैं । ते कैसे हैं ? उद्धत 卐 उत्कट तीव्र उदय भया जो मोह मिथ्यात्व ताकरि मुद्रित भई है बुद्धि जिनकी तिनिका बोध कहानी शुद्धि अर्थ वस्तुकी मर्यादा कहिये है । कैसी कहिये है? 5 स्याद्वाद के प्रतिबन्ध कहिये प्रवन्ध ताकरि पाइये है विजय कहिये निर्बंधसिद्धि जानें। भावार्थ - ई वादी सर्वथा एकान्तकरि कर्मका कर्त्ता कर्महीकूं कहे हैं। अर आत्माकू अकर्त्ता ही कहे हैं । ते आत्माका स्वरूपके घातक हैं । अर जिनवाणी हैं सो स्याद्वादकर 45 5 वस्तु निर्बाध साधे है, सो वाणी आत्माकु कथंचित् कर्त्ता कहे है, सो तिनि सर्वथा एकान्तीनिपरि वाणीका कोप है । तिनिकी बुद्धि मिथ्यात्वकरि मूदि रहे है । तिनिके मिथ्यात्वके दृरि 5 करनेकू आचार्य कहे हैं। स्याद्वादकरि जैसी वस्तुसिद्धि होय है, तेसे कहिये है । गाथा - फ 卐 कम्मेहि दु अयणाणी किज्जदि णाणी तहेव कम्मेहिं । कम्मेहिं सुवाविज्जदि जग्गाविज्जदि तहेव कम्महि ||२५|| 5 फफफफफफफफफफफफफ कम्मेहिं सुहाविज्जदि दुक्खाविज्जदि तहेव कम्मेहिं । कम्मेहिय मिच्छत्त गिज्जदि य असंजयं चेव ॥२६॥ 卐 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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