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________________ य फफफफफफफफफफफफफफ 卐 卐 卐 ज्ञानपरि षट्कारक भेदरूप लगाय, फेरि अभेदरूप करनेकुं कारकभेदका निषेध करि. एक 5 प्राभृ ज्ञानमात्र आपका अनुभवन करना । फ्र भावार्थ- पहले तो सामान्य चेतनाका अनुभवन कराया। सो आत्माकूं प्रज्ञाकरि ग्रहण करना पहले का था, सो चेतनाका अनुभवन करना ही ग्रहण करना है-किछू अन्य वस्तूका 5 ग्रहण करना नाहीं है । बहुरि अनुभवन करना, अनुभवन करनेवाला, अनुभवन जाकर कीजिये 卐 इत्यादि कारक भेदरूप कहिकरि अभेदविवक्षामैं कारकभेदका निषेध किया, एक शुद्ध चेतनामात्र ही कहा था । अर अब इहां चेतनासामान्य है सो दर्शनज्ञानविशेषकं नाहीं उल्लंघि वर्ते 5 है । तातें द्रष्टा अर ज्ञाताका अनुभवन कराया । तहां भी षट्कारकरूप भेद अनुभवनकरि पीछे अभेद अनुभवन अपेक्षा कारकभेद दूरि करि द्रष्टा ज्ञातामात्रका अनुभवन कराया है। 卐 卐 इहां शिष्य पूछे है, जो चेतना दर्शनज्ञानभेदकूं कैसें नाहीं उल्लंघे है ! जाकरि चेतयिता आत्मा द्रष्टा ज्ञाता होय । ताका उत्तर कहे हैं। प्रथम तौ चेतना है सो प्रतिभासरूप है, सो 5 ऐसी चेतना है सो दोयरूपपणाकूं नाहीं उल्लंघि वर्ते है । जातें सर्व ही वस्तुका सामान्यविशेष फ्र रूप स्वरूप है । सो चेतना भी वस्तु है, सो सामान्य विशेषरूपकूं कैसें उल्लंघे ? सो ताके 卐 दोयरूप हैं ते दर्शन ज्ञान हैं, तातें सो चेतना तिनि दर्शन ज्ञान दोऊनिकूं नाहीं उल्लंघे है। 5 4 बहुरि जो इनि दोयरूपकूं उल्लंघे तो सामान्यविशेषरूपका उल्लंघवापणात चेतना ही न होय है । तिस चेतनाके अभावतें दोय दोष आवै एक तौ अपने गुणका उच्छेद होनेते चेतनके अचे5 तनपणाकी प्राप्ति आवे, अर दूसरा व्यापक जो चेतना, ताका अभाव होतें, व्याप्य जो चेतन आत्मा ताका अभाव होय है । तातें तिनि दोषनिके भयतें चेतना दर्शनज्ञानस्वरूप ही अंगिकार 5 करनी। अब इस अर्थका कलशरूप काव्य कहे हैं । 卐 ताऽपि हि चेतना जगति चेद्द्दज्ञप्तिरूपं त्यजेत् तत्सामान्यविशेषरूपविरहात्साऽस्तित्वमेव त्यजेत् । तच्या जडता चितोऽपि भवति व्याप्यो विना व्यापफादात्मा चान्वमुपैति तेन नियतं हरज्ञप्तिरूपास्तु चित् ॥४॥ फ्रफ़ फफफफफफ 卐 卐 க 卐 ४३
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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