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________________ 乐 मय $ $ $ $ $ 5 1- निमित्त होते भावनिकू भी त्यागे है, ऐसे द्रव्यभावके निमित्तनैमित्तिकभाव हैं। भावार्थ-यह द्रव्यकै अर भावकै निमित्तनैमित्तिकपणा उदाहरणकरि दृढ़ किया है। जैसे 5 ..लौकिकजन कहे हैं जो जैसा दाणा खाय, तैसी बुद्धि उपजै । तैसें ही शास्त्रमें उदाहरण है-जो पापकर्मकरि आहार निपजे, ताकू अधःकर्मनिष्पन्न कहिये तथा जो आहार किसीके निमित्त 5 निपजै, ताकू उद्देशिक कहिये । सो ऐसा आहार जो पुरुष सेवे, ताके तैसे ही भाव होय । ऐसा .. द्रव्यभावका निमित्तनैमित्तिकभाव है, तैसा ही समस्तद्रव्यनिका निमित्तनैमित्तिकभाव जानना। +ऐसे होते जो परद्रव्यकू ग्रहण करे है ताकै रागादिभाव भी होय हैं, तिनिका कर्ता भी होय है, । तब कर्मका बंध भी करै है। बहुरि जब ज्ञानी होय है, तब काहूके ग्रहण करनेका राग नाहीं, तब "रागादिरूप परिणमन भी नाहीं, तब आगामी वंघ भी नाहीं, ऐसें ज्ञानी परद्रव्यका कर्ता नाहीं ॥ है। अब इस अर्थका कलशरूप काव्य कहि परद्रव्यके त्यागनेका उपदेश करे हैं। ___ शार्दूलविक्रीडितछन्दः इस्पालोच्य विषम्य शकिल परद्रध्यं सभ बलाचन्मूलं बहुभावसन्ततिमिमामुद्धतु कामः समम् ॥ आत्मानं समुपैति निर्भरवहत्पूर्णकसंचिद्युतं येनोन्मूलितबन्ध एष भगवानात्मात्मनि स्फूर्जति ॥१६॥ + अर्थ-जो पुरुष ऐसे परद्रव्यके अर अपने भावके निमित्तनैमित्तिकपणा विचारिकरि, तिस ..परद्रव्यसमस्त• अपना बल-पराक्रम-उधमकरि, त्याग करिके, अर सो परद्रव्य है मूल जाका गऐसी बहुत भावनिकी संतति--परिपाटीकू दूरि युगपत् उडावनेषं चाहता संता अतिशयकरि । पर बहता प्रवाहरूप धारावाही पूर्ण एकसंवेदन, तिसकरि युक्त जो अपना आत्मा, ताहि प्राप्त होय "है। जिस कारणकरि उन्मूलित किये हैं-मूलतें उपाडे हैं कर्मके बंधन जाने ऐसा भगवान् यह आत्मा आपहीविर्षे स्फुरायमान प्रगट होय है। भावार्थ-परद्रव्यके अर अपने भावके निमित्तनैमित्तिकभाव जानि, समस्त परद्रव्यकू त्यागे, तब समस्तरागादि भावनिकी संतति कटि जाय, अब आत्मा अपना ही अनुभव करता संता $ 55 5 5 5 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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