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________________ th+ ++F + + + ++ + + "पणाकरि स्वार्थ क्रियाकारिपणाका अभाव है। परभाव परविर्षे प्रवेश करे माहीं। कोई कहै 'मैं आकाशका फूलकू चुटूंहू" ऐसा अध्यवसान करे सो झूठा होय, तेसे मियारूप है तो केवल आपके अनर्थहीके अर्थ है, परकै किछू भी करनेवाला नाहीं है। 4 भावार्थ--जाका लिलय जाहीं सो निरर्थक है । सो परकू दुःखी सुखी आदि करनेकी बुद्धि करै, सो पर याका किया दुःखी सुखी होय नाहीं, तब बुद्धि निरर्थक भई, सो या बुद्धि मिथ्या । है। आगै फेरि पूछे है जो यह अध्यवसान अपनी अर्थ क्रियाका करनेवाला केसें नाहीं? साका उत्तर कहे हैं । गाया अज्झवसागणिमित्तं जीवा वज्झंति कम्मणा जदि हि। मुचंति मोक्खमग्गे ठिदा य ते किंकरोसि तुमं ॥३१॥ अध्यवसाननिमित्तं जीवो बध्यन्ते कर्मणा यदि हि। मुच्यन्ते मोक्षमार्गे स्थिताश्च तत् किंकरोषि त्वं ॥३१॥ ' आत्मख्यातिः—यत्किल बंधयामि मोचयामीत्यध्यवसानं तस्य हि स्वार्थक्रिया यद्वन्धनं मोचनं जीवानां । जीवस्तु, ._ अस्पाध्यवसायस्य सद्भावेऽपि सरागवीतरागयोः स्क्परिणामयोः, अभावान बध्यते न मुच्यते । सरागवीतरागयोः स्वपरि卐णामयोः सद्मावालस्याध्यवसायस्याभावेऽपि बध्यते मुच्यते च, यतः परत्राकिंचित्करत्वान्नेदमभ्यक्सानं स्वार्थक्रियाकारि ._ततच मिध्यैवेति भावः। अर्थ-भाई! जो जीव हैं ते अध्यवसान है निमित्त जिनिकू ऐसे कर्मकरि बंधे हैं । वहरि । मोक्षमार्गविर्षे तिष्टया कर्मकरि छूटे हैं । जो ऐसे है, तो तू कहा करेगा? तेरा तो बांधने के "छोडनेका अभिप्राय विफल गया । 5. टीका-हे भाई ! तेरी यह बुद्धि है, जो मैं प्रगटाणणे बंधाऊं हू छुडाचूह ऐसा अध्यवसान ..है ताकी अर्थक्रिया जीवनिका बांधना छोडना है । सो जीव तौ इस अध्यवसायका सद्भाव + + + +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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