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________________ कफफफफफफफफफE 卐 फा सर्व सदैव नियतं भवति स्वकीयकर्मोदयान्मरणजीवितदुःखसौख्यम् । अज्ञानमेतदिह यत्तु परः परस्य कुर्यात्पुमान्मरणजीवितदुःखसौख्यम् ॥६॥ 卐 卐 अर्थ- इस लोक में जीवन मरण जीवित दुःख सुख हैं ते सर्व ही सदाकाल नियमतें अपने अपने कर्मके उदयते होय हैं । बहुरि जो परपुरुष है सो के I वित दुःख सुख करे है यह मानना है सो अज्ञान है । फेरि इस ही अर्थ दृढ करते संते अगिले कथानकी सूचनिका रूप काव्य कहे हैं। 卐 卐 卐 दृष्टिमें गौण है । अब इस अर्थका कलशरूप काव्य है I वसन्ततिलका छन्दः 卐 वसन्ततिलका छन्दः अज्ञानमेतदधिगम्य परात्यरस्य पश्यन्ति ये भरणजीवितदुःखसौख्यम् । कर्माण्यहंकृतिरसेन चिकीर्षवस्ते मिथ्यादृशो नियतमात्महनो भवति ॥७॥ अर्थ - यह पूर्वोक्त मानना अज्ञान है, ताही प्राप्त होय करि जे पुरुष परतें परकें मरण जीवित सुख दुःख होना देखें हैं, माने हैं, ते पुरुष "मैं इनि कर्मनिकं करूं हूं" ऐसा अहंकाररूप 5 फरसकरि कर्मनिकू करनेके इच्छुक हैं, कर्म करनेकी भारने जीवावने की सूखी दुःखी करनेकी वांछा करे हैं ते नियमकरि मिथ्यादृष्टि हैं । आप ही करि अपना घात जिनिके पाइये है ऐसे हैं । 卐 卐 भावार्थ -- जे परकूं मारने जीवावनेका तथा सुखदुःख करनेका अभिप्राय करे हैं, ते मिथ्या दृष्टि हैं । अर अपना स्वरूपते च्युत भये रागी द्वेषी मोही होय आपही करि आपका घात करे हैं, तातें हिंसक हैं। आगे इस अर्थ गाथामें कहे हैं। गाथा फफफफफफफफफफफफफ जो मरदि जोय दुहिदो जायदि कम्मोदयेश सो सम्बो ता दुमारिदो दुहाविदो चेदि गहु मिच्छा ॥ २१ ॥ 卐 卐 卐 । 卐 卐 LC
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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