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________________ 5 55 5 分 $ $ 乐,乐 乐乐 乐乐 乐 के है। जो ऐसे होय, तौ जिसिके तेल आदि न लग्या होय, तिनिके भी तिनि करणनिकरि रजका समयबंध लागे। बहुरि सचित्त अचित्त वस्तुनिका उपघात है, सो भी तिस रजके लगने कारण " 25 नाहीं है। जो ऐसे होय तो जिनिकै तेल आदि लग्या नाहीं तिनिक भी सचित्त अचित्तका घात है करते संते रजका बंध लागै । तातें न्यायका बलकरि ही यह आया, जो तिस पुरुषविर्षे तैल आदि सचिवणका मर्दन करना है सो बंधका कारण है। ऐसे ही मिथ्यादृष्टि जीव अपना 卐 of आत्माविर्षे राग आदि भावनिकू करता संता स्वभावहीत कर्मके योग्य जे पुद्गल तिनिकरि भरया जो लोकताविरों का वचन मनकी क्रियाकू करता संतो अनेक प्रकारके करणनिकरि का म सचित्त अचित्त वस्तूनिकू घातता संता, कर्मरूप रजकरि बंधे है। तहां विचारिये, बंधका कारण ।। अतिशयवान् कौन है ? तहां प्रथम तौ स्वभावहीतें कर्मयोग्य पुद्गलनिकरि बहुत भरथा लोक का बंधका कारण नाहीं है । जो तिनितें बंध होय तौ लोकमें सिद्ध भी तिष्ठे हैं, तिनिका भी बंधकाम 1- प्रसंग आवे है । बहुरि काय वचन मनका कियास्वरूप योग हैं, ते भी बंधके कारण नाहीं हैं। " जो तिनितें बंध होय यथाख्यातसंयमीनिकी काय वचन मनकी किया हैं, तिनिके भी बंधकाम 1 प्रसंग आवै है। बहुरि अनेक प्रकारके करण हैं, ते भी बंधके कारण नाहीं हैं। जो तिनितें बंध " होय, तो केवलज्ञानीनिकै भी तिनिकरणनिकरि बंधका प्रसंग आवे है। बहुरि सचित्त अचित्त ॥ 卐 वस्तूनिका उपघात है, सो भी बंधका कारण नाहीं है । जो तातें बंध होय, तौ जे साधु समिति- .. विर्षे तत्पर हैं, यमरूप प्रवर्ते हैं, तिनिके भी सचित्त अचित्तके घाततें बंधका प्रसंग आवै है, ताते । न्यायका बलकरि ही यह आया-जो उपयोगविर्षे रागादिकका करना है, सो ही बंधकाम $ + + $ + 4. कारण है। __भावार्थ-इहां निश्वयनय प्रधान करि कथन है । सो जहां निर्बाध हेतुकरि सिद्ध होय, सो ; ही निश्चय, सो बंधका कारण विचारिये, सो निर्बाध यह ही सिद्ध भया-जो मिथ्यादृष्टि पुरुष ।। राम द्वेष मोह भावनिकू अपने उपयोगविय करे हैसो येरागादिक ही बंधके कारण हैं । अर अन्य । +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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