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卐 जो-सम् ऐसा तो उपसर्ग है, बहुरि अय गतौ धातु है ताका गमन अर्थ भी है अर ज्ञान अर्थ भी
है, उपसर्गका एकपणा अर्थ है, तातें एककाल जानना अर परिणमना दोऊ क्रिया होय सो समय, सोही जीव नामा पदार्थ है। एकैकाल परिणमै भी है अर जाने भी है, ऐसे दोऊ क्रिया एककाल जाननी । सो कैसा है ? नित्य ही परिणामस्वभावविर्षे तिष्ठनेते उत्पादव्ययधौव्यकी
एकतारूप जो अनुभूति सो है लक्षण जाका ऐसी जो सत्ता, ताकरि अनुस्यूत है-सहित है। इस + विशेषणकरि नास्तिकवादी जीवकी सत्ता माने नाहीं ताका निराकरण भया, तथा सांख्यमती -
पुरुषकू अपरिणामी माने हैं, ताका परिणामस्वभाव कहनेते व्यवच्छेद भया, तथा नैयायिक वैशे । प्रषिकमती सत्ताकू नित्य ही माने हैं, तथा बौद्धमती सत्ताकू क्षणिक ही माने हैं तिनिका उत्पाद- व्ययधौव्यरूप कहनेते निराकरण भया।
बहुरि कैसा है ? चैतन्यस्वरूपपणातें नित्य उद्योतरूप निर्मल स्पष्ट दर्शनज्ञानज्योतिःस्वरूप + है, चैतन्यका परिणामन दर्शनज्ञानरूप है। इस विशेषणकरि सांख्यमती चैतन्यकुं ज्ञानाकारस्वरूप
नाहीं माने हैं, ताका निराकरण भया । बहुरि कैसा है ? अनंतधर्मनिविर्षे अधिरूढ़ तिष्ठथा जो॥ 卐 एकधर्मीपणा तातें प्रगट भया है द्रव्यपणा जाका, अनंतधर्मनिका एकपणा लो ही द्रव्यपणा है।..
इस विशेषणकरि वस्तुकू धर्मनिते रहित माननेवाला बौद्धमती ताका निषेध भया । बहुरि कैसा 卐 है ? क्रमरूप अर अक्रमरूप प्रवते जे अनेअभाव तिस स्वभाषपणातें अंगीकार करे हैं गुणपर्याय । .. जाके । पर्याय तो क्रमवर्ती हैं अर गुण सहवर्ती हैं तिनि• अक्रमरूप कहना। इस विषेशणकरि" पुरुषकू निर्गुण माने ऐसे सांख्यादिक तिनिका निरास है।
बहुरि कैसा है ? अपना अर अन्यद्रव्यनिका आकारके प्रकाशनेवि समर्थपणातें पाया है ... समस्तरूप जामें झलके ऐसा एकरूपपणा जाने, अनेकवस्तुनिका आकार जामें झलके ऐसा एकक ज्ञानका आकाररूप है। इस विशेषणकरि ज्ञान आपहीकू जानै परकून जाने ऐसा एकाकार माननेवालाका तथा आपकून जानै परहीकू जाने ऐसा अनेकाकार ही माननेवालाका व्यवच्छेद।