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________________ फफफफफफफफफफफफफफ फ 卐 अर्थ - बहुरि जे पुरुष शुद्धयतें छूटिकरि फेरि रागादिके योग कहिये संबंधकूं प्राप्त होय हैं, फ्र य ते छोडा है ज्ञान जिनिने ऐसे भये संते कमबंधकूं धारे हैं । कैसा कर्मबंधकू धारे हैं ? पूर्वे बंधे 卐 5 प्रा जे द्रव्यास्त्रव तिनकरि कीया है विचित्र अनेकप्रकार विकल्पनिका जाल जाने । 卐 भावार्थ - फेरि शुद्धयतें चिगे तो रागादिकके संबंध द्रव्यास्त्रवके अनुसार अनेक भेद लिये फ कर्मनि बांधे है । नयतें चिगना यह जो फेरि मिथ्यात्वका उदय आय जाय तब बंध होने लागि 卐 जाय । जातें इहां मिथ्यात्वसंबंधी रागादिकतें बंध होनेकी प्रधानताकरि है अर उपयोगकी अपेक्षा 5 卐 गौण है। शुद्धोपयोगरूप रहनेका काल अल्प है । तातें ताका छूटनेकी अपेक्षा इहां नाहीं । अन्य 卐 ज्ञेयतें ज्ञान उपयुक्त होय तौऊ मिथ्यात्वविना रागका अंश है, सो ज्ञानीके अभिप्रायपूर्वक नाहीं । 5 तातें अल्पबंध संसारका कारण नाहीं । अथवा उपयोगकी अपेक्षा लीजिये तब शुद्धस्वरूपते चि सम्यक्त्व न छूटै । तत्र चारित्रमोहका रागते किछू बंघ होय है, सो अज्ञानकी पक्ष नाही 5 गिनिये, अर बंध है ही । ताकं मेटने शुद्ध नयतें न छूटनेका अर शुद्धोपयोग में लीन होने का 5 सम्यग्दृष्टि ज्ञानी कूं उपदेश है, ऐसें जानना। आगे इस ही अर्थ के समर्थनकूं दृष्टांतकरि दिखाये हैं। गाथा 卐 卐 फ फ्र फ 卐 卐 卐 卐 卐 ३७ கககககககககககககழ जह पुरिसेणाहारो गहिदो परिणमदि सो अणेयविहं । मंसवसारुहिरादी भावे उदरग्गिसंजुत्तो ॥ १६ ॥ तह गाणिस्स दु पुब्वं जे बद्धा पच्चया बहुवियप्पं । वांते कम्मं ते णयपरिहीया दु ते जीवा ॥१७॥ यथा पुरुषेणाहारो गृहीतः परिणमति सोऽनेकविधम् । मांसवसारुधिरादीन्भावानुदराग्निसंयुक्तः ॥ १६॥ 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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