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________________ 卐卐 - निमित्त जिनिकू। याहीते ते जड नाहीं है। ऐसे होते ते चिदाभास हैं। जिनिमें चैतन्यकी । "आभासा है । जातें मिथ्याव अविरत कषाय योग हे ते पुद्गलके परिणाम है ते ज्ञानावरण आदि 卐 पुद्गलकर्मनिके आसूवण कहिये आबनेकू निमित्त हैं, तिसपणेकरि ते प्रगट आसूव हैं। बहुरि तिनि मिथ्यात्वादिकनिके ज्ञानावरणादिके आगमनकू निमित्तपणाके निमित्त अज्ञानमय आत्माके परिणाम राग द्वेष मोह हैं । तातें मिथ्यात्व आदिके कर्मके आसबके मिमित्तपणाके निमित्तपणातें - राग द्वेष मोह ही आसव हैं ते अज्ञानीके ही होय हैं, ऐसा अर्थते ही आय प्राप्त होय है, सूत्रमें विना का भी अर्थतें आवे है। भ भावार्थ-ज्ञानावरणादिकम निके आवने तो कारण मिथ्यात्वादिकर्मका उदयरूप पुद्गलके परिणाम हैं । वहुरि तिनिके कमक आवनकू निमित्त होनेका निमित्त जीवके रागद्वेषमोहरूप परिप्रणाम हैं, तिनिकू चिद्विकार कहिये । ते जीवके अज्ञान अवस्थामें होय हैं। सम्यग्दृष्टीके अज्ञान अवस्था नाहीं, जातें मिथ्यात्वसहित ज्ञान• अज्ञान कहिये । सम्यग्दृष्टि ज्ञानी भया, तातें ते ज्ञान अवस्थामें नाहीं । बहुरि अविरतसम्यग्दृष्टि आदिके चारित्रमोहके उदयतें रागादिक होय हैं, तिनि1. का याके स्वामीपणा नाहीं है, उदयकी बरजोरीतें है, तिनिकू रोगवत् जानि मेटया चाहे है, इस अपेक्षा इनितें राग नाहीं। तातें मिथ्यात्वसहित रागादिक होय, तेही अज्ञानमय रागद्वेषमोह हैं, ते सम्यग्दृष्टिके नाहीं हैं ऐसा जानना । आगे, ज्ञानीके तिनि आस्रवनिका अभाव दिखावे हैं + + 5 hhhhhhhhh55° + ++ गाथा + पत्थि दु आसवबंधो सम्मादिठिस्स आसवणिरोहो। संते पुव्वणिबद्धे जाणदि सो ते अबंतो॥३॥ नास्ति त्वासवबंधः सम्यग्दृष्टेरास्वनिरोधः। संति पूर्वनिबद्धानि जानाति स तान्यबध्नन् ॥३॥ २७३ +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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