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________________ $ $ $ $ $ + $ व्रतनियमान् धारयंतःशीलानि तथा तपश्च कुर्वाणाः। परमार्थवाह्या येन तेन ते भवन्स्यज्ञानिनः ॥ ९ ॥ ___आत्मख्यातिः-ज्ञानमेव मोक्षहतुस्तदभावे स्वयमज्ञानभूवानामज्ञानिनामन्त तनियमशीलतपः प्रभृतिशुभकर्मसद्धावेऽपि मोक्षाभावात् । अज्ञानमेव बंधहेतः, तदभावे स्वयं ज्ञानभूतानां ज्ञानिनां बहि तनियमशीलतपः प्रभृतिशुभकर्मा- . सद्भावेऽपि मोक्षसद्भावात् । अर्थ-ये केई व्रत अर नियम इनिकूधारे हैं तैसें ही शील बहरि तप तिनिकू करे हैं अर ... परमार्थभूत ज्ञानस्वरूप आत्मातें बाह्य हैं ताका स्वरूपका ज्ञान श्रद्धान जिनिकै नाहीं है ते निर्वाजणकू नाहीं अनुभवे हैं, नाहीं पावे हैं। - टीका-ज्ञान ही मोक्षका हेतु है । जाते ज्ञानके अभावकू होते आप अज्ञानरूप भये जे "अज्ञानी तिनिके अंतरंगविर्षे ब्रत नियम शील तपोरूप शुभकर्मका सद्भाव होते भी मोक्षका अभाव है। ज्ञानविना शुभकर्मरूप व्रत नियम शील तपोरूप प्रवृत्ति होते भी मोक्ष नाही होय है । बहुरि __ अज्ञान है सो ही बंधका हेतु है । जातें अज्ञानका अभाव होते आप ज्ञानरूप भये जे ज्ञानी, 卐तिनिके वाह्य व्रत नियम शील तप आदि शुभकर्मका असद्भाव होते भी मोक्षका सदुभाव है। भावार्थ-ज्ञान होते ज्ञानोके व्रत नियम शील तपोरूप शुभकर्म बाह्य न होते भी मोक्ष होय है। इहां ऐसा जानना, जो व्रत आदिकी प्रवृत्ति शुभकर्म है, सो प्रवृत्तिका अभाव भये-निर्वृत्ति 1- अवस्था भये व्रत नियम शील सपका बाह्यप्रवृत्तिरूपका अभाव है, तौऊ मोक्ष होय है, यह नियम "जानना । इस अर्थका कलशरूप काव्य है। शिखरिणीछन्दः यदेतज्ञानात्मा ध्रुवमचलमाभाति भवनं शिवस्यायं हेतुः स्वयमपि यतस्तच्छिव इति । अतोऽन्यबंधस्य स्वयमपि यतो बन्ध इति तत् ततो झानात्मत्वं भवनमनुभूतिहि विहितम् ॥६॥ अर्थ- जो यह ज्ञानस्वरूप आत्मा ध्रुव है सो जब निश्चल अपने ज्ञानस्वरूप होता सोहे है, $ + ॐ ++ + ++ +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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