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बंधका कारणपणा होतें संतें मोक्षका कारणपणाकी तैसीहि उपपत्ति है, मोक्षका हेतुपणा ज्ञान
5 हीके बने है। सो यह ज्ञान है सो ही परमार्थ है, आत्मा है ऐसा कहिये है, जातें समस्त कर्मकुं आदि लेकर अन्य पदार्थनितें मित्र जात्यंतर चिज्ञातिमात्र है । सो ही परमार्थ स्वरूप आत्मा है,
प्रासू
जातितें भिन्न है । तो यही समय कहिये । जाते समय शब्दका ऐसा अर्थ पूर्वे का है- फ्र
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सम् ऐसा तो उपसर्ग है, ताका अर्थ तो एकेकाल एकरूप प्रवर्तना है, बहुरि अब ऐसा शब्दका अर्थ ज्ञान भी है, अर गमन भी सो दोऊ कियारूप एकै काल होय प्रवर्ते, ताकूं समय कहिये | 5
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सो ऐसा प्रवर्तन जीव नाम पदार्थका है, सो ही आत्मा है। बहुरि तिस हीकूं शुद्ध ऐसा नाम
कहिये, जातें समस्त धर्म तथा धर्मो ग्रहण करनेवाले जे नय तिनका पक्ष तिनितें असंकीर्ण फ
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फ कहिये मिले नाहीं, न्यारा ही एक ज्ञानपणा है, यह असाधारण धर्म है सो अन्यधर्मनित न्यारा ही प्रकाशरूप है, अन्यतें न मिले, सो एककूं शुद्ध कहिये । बहुरि याहीकुं केवली कहिये, जातें केवल
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चैतन्यमात्र वस्तुपणा या है, केवलशब्दका अर्थ एक है। बहुरि याहीकू' मुनि कहिये, जातें फ्र
एक
मननमात्र कहिये ज्ञानमात्र तिसभावमात्र यह है, तिसवणाकर मुनि भी यह ही है । बहुरि आप
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स्वयमेव ज्ञानी है हो, तिसपणाकरि ज्ञानी भी याकू कहिये है। बहुरि अपना जो ज्ञानस्वरूप, फ
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ताका भवन कहिये होना सत्तारूप प्रवर्तना, तिसपणाकरि स्वभाव भी याकूं कहिये । तथा अपना चेतनाका
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कहिये सतारू होना, ताकरि सद्भाव ऐसा भी याहीका नाम है। ऐसे
5 शब्दनिके भेद नाम भेद होतें भी वस्तु भेद नाहीं है ।
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भावार्थ-मोक्षका अपादान तौ आत्मा ही है, सो आत्माका परमार्थकरि ज्ञान स्वभाव है,
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सो ज्ञान है सो आत्मा ही है, तथा आत्मा है सो ज्ञान ही है । तातें ज्ञानहीकूं मोक्षका कारण
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5 कहना युक्त है । आगे, कोई जानेमा की, वाह्य तपश्चरणादि करे है, सो ही ज्ञान है, ताकूं ज्ञान- 5: की विधि बताये हैं । गाथा