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________________ - $ $ $ $ 5 折 तीनमें । ऐसें गाया बारहमें संवरका अधिकार पूर्ण कीया है। यामें टीकाकारकृत कलशरूप काव्य ॥ आठ हैं। आगें निर्जराका अधिकार है। । तहां प्रथम ही द्रव्यनिर्जराका स्वरूप कहा है। पीछे भावनिर्जराका स्वरूप कया है। आगे ज्ञानका सामध्ये दिखाया है। आगें वैराग्यका सामर्थ्य दिखाया है। पीछे ज्ञानवैराग्यसामग्रंकू प्रगके टकर दिखाया है। आरौं सम्यग्दृष्टिकै आपपरका जाननेका सामान्यविशेषका विधान कह्या है। आगे तिसही विधानतें वैराग्य होय है ऐसे कया है । आर्गे शिष्यका प्रश्न है, जो सम्यग्दृष्टि रागी " 卐 कैसे न होय है, ताका उत्तर है। आगे उपदेश किया है जो अज्ञानी रागी प्राणी रागादिककू अपना पद जाने है तिस पदकू छोडि, अपना वीतराग एक ज्ञायकभावपदवि तिष्ठो। आगें आत्माका पद ज्ञायकस्वभाव है, सो ज्ञानविय भेद हैं ते कर्मके क्षयोपशमके मिमित्तते हैं। ऐसें कया है। आगे कह्या है, जो ज्ञान है सो ज्ञानही पाइये है। आगें शिष्यका प्रश्न है, जो ज्ञानी परकू काहेते ग्रहण न कर हैं, ताका उत्तर है । आगे ज्ञानी परिग्रहका त्याग करे, ताका विधान कह्या है। आगें F कह्या है, जो इस विधानतें परिग्रहकू त्यागै, तो कर्मसूं न लिपे है। आगें कह्या है, जो कर्मका फलकी वांछा करि कर्म करे, सो, कर्मकरि लिपे, विना वांछा कर्म करै, तोऊ कर्मत लिपे नाही, 卐 ताका दृष्टांतकरि कथन है। । आगे कहा है, जो सम्यक्त्वके आठ अंग हैं, सो प्रथम तो सम्यष्टि निशंक होय है। सात .. 卐 भयनिकरि रहित होय है । बहुरि निष्कांक्षिता, निर्विचिकित्सा, उपगृहन, अमूढत्व, वात्सल्य, स्थि. .. तिकरण, प्रभावना इनिका निश्चयनयकू प्रधानकरि वर्णन है। ऐसे गाथा ४४ चवालीसमें निर्जरा - अधिकार पूर्ण किया है। यामें टीकाकारकृत कलशरूप काव्य तीस हैं। - आगें बंधका अधिकार है। तहां प्रथमही बंधका कारण कहा है गाथा पांचमें। पीछे कया है "है; जो ऐसे कारणरूप आत्मा न प्रवर्ते, तो, बंध न होय गाथा पांचौं । आगें मिथ्यादृष्टिक बंध होय .. 'हे ताका आशयकू प्रगट करि कहा है । आर्गे शिष्य पूछे है, मिथ्यादृष्टिका आशयकू प्रगट अज्ञान 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 $ $
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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