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________________ 乐 乐乐 乐 $ s s s s s 听听听: आ णाम है, तिनि दोऊनिका कदाचित्काल अज्ञानतें इनिकू करनेते इनिका आत्माकू भी कर्ता कहिये : है। परंतु परद्रव्यस्वरूप कमका तो कता कदाचित् भी नाहीं है। __भावार्थ-आत्माके योग उपयोग तो घटादि तथा क्रोधादिककू निमित्त हैं। तिनिकू तो । 卐 तिनिका निमितकता कहिये । अर आत्माकू तिनिका कती न कहिये । अर आत्माकूयोगोपयोगका कर्ता संसारावस्थामै अज्ञानतें कहिये । इहां तात्पर्य ऐसा-जो द्रव्यदृष्टिकरि तो कोई द्रव्य अन्य " काहू द्रव्यका कर्ता नाहीं, बहुरि पर्यायदृष्टिकरि कोई द्रव्यका पर्याय कदाकाल काहू अन्य द्रव्यके' पर्यायकू निमित्त होय है सो इस अपेक्षा अन्यके परिणाम अन्य के परिणामका निमित्तकर्ता कहिये... बहुरि परमार्थत द्रव्य अपने परिणामका कता है, अन्यके परिणामका अन्य द्रव्य कर्ता नाहीं है, ऐसा जानना । आगें ऐसा कहे हैं, जो, ज्ञानी ज्ञानहीका कर्ता है । गाथा जे पु गलदवाणं परिणामा होति णाणआवरणा। ण करेदि ताणि आदा जो जाणदि सो हवदि णाणी ॥३३॥ ये पुद्गलद्रव्याणां परिणामा भवंति ज्ञानावरणानि । न करोति तान्यात्मा यो जानाति स भवति ज्ञानी ॥३३॥ आत्मख्यातिः--ये खलु पुद्गलद्रव्याणां परिणामा गोरसव्यातदधिदुग्धमधुराम्उपरिणामवत्पुद्गलद्रव्यच्या त्वेन भवतो ) शानावरणानि भवंति तानि तटस्थगोरसाध्यक्ष इव न नाम करोति ज्ञानी किंतु न यथा स गोरसाध्यक्षस्तदर्शनमात्मम्यासत्वेन प्रभवद्वधाप्य पश्यत्येव तथा पुद्गलद्रव्यपरिणामनिमित्तं ज्ञानमात्मन्याप्यत्वेन प्रभवयाप्य जानात्येव बानी' झानस्यैव कर्ता स्यात् । एवमेव च ज्ञानावरणपदपरिवर्तनेन कर्मसूत्रस्य विमागेनोपन्यासाद्दर्शनावरणवेदनीयमोहनीयापुर्नामगोत्रांतरायः सप्तभिः सह मोहरागद्वपक्रोधमानमायालोभनोकर्ममनोवचनकायश्रोत्रचधुर्याणरसनस्पर्धनसूत्राणि पोरस' म्यास्येवानि । अनया दिशान्यान्यप्यूछानि । अज्ञानी चापि परमावस्य न कर्ता स्यात् । ___अर्थ-जे ज्ञानावरणादिक पुदगलद्रव्यनिके परिणाम हैं, तिनिकू आत्मा नाहीं करे है। जो卐 न जाने है सो ज्ञानी है।
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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