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________________ ॐ ह्रीं प्राचार्योपाध्याप सब साधू समूह भत्र अवतरत अवतरत संवौषट् । ॐ ह्रीं भाचार्योपाध्याय सर्व साधु समूह अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः । ॐ ह्रीं भाचार्योपाध्याय सर्व साधु समूह अन्न मम सन्निहितो भव भव धषट् । गुरू पादुका स्थापनम् ।। समुकच्याष्टक ) देवेन्द्र नागेन्द्र नरेन्द्रवन्धान शुम्मत्पदान्शोभितसार वर्णान् । दुग्धाब्धि संस्पदि गुणैर्जलौघुजिनेन्द्र सिद्धान्त यतीन्पजेऽहम् ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं परं ब्रह्मणे अनंतानंत ज्ञान शक्तये अष्टादशदोष रहिताय षट् कमरिंशद्गुण सहितायाहपरमेष्ठिने, जिनमुखोद्भुत स्याद्वाद नय गर्मित द्वादशांग श्रुतज्ञानाय, सम्यग्दर्शनादि गुणविराजमानाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यश्च जलं निपामीति म्बाहा ॥ ताम्यत् त्रिलोकोदर मध्यवर्ति, समस्त सवाहितहारिवायान् । श्री चन्दनैर्गध पिलुब्ध भृङ्गजिनेन्द्र सिद्धान्त यतीन्यजेऽहम् ॥ चंदनं ॥ २ ॥ अपार संसार महासमुद्र प्रोत्तारणे प्राज्यतरीन् सुभक्त्या । दीर्धाक्षतागर्धनलाक्षतौजिनेन्द्र सिद्धान्त यतीन्यजेऽहम् ।। अदतं . ३ । विनीत भव्याब्ज विवोध मूविर्यान्सुचर्या कथनैक धुन् । कुन्दारविन्दप्रमुखः प्रसूनैजिनेन्द्र सिद्धान्त यतीन्यजेऽहम् । पुप्पं ॥ ४ ॥ ॥२४ा
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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