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________________ - - -- - प्रीयंता २, श्री आदिन्दा म मंगल बुध वृहस्पति शुक्र शनिश्चर राहु केतु सर्वे नवग्रह देवाः प्रीयंताम् २ प्रमीदंतु देश राष्ट्रस्य पुरस्य २३ करोतु शांति भणया जिमेन्द्रः । पत्सुखं त्रिपु लोकेषु, व्याधि व्यसन वर्जितम् । अभयं ममाराग्य, स्वास्त रस्तु सदा मम ॥ यथार्थ क्रियते कर्भ, मप्रीतो नित्य मरतु मे । शांतिक पौष्टिकं चैत्र, मब कोर्येषु सिद्धिदः ॥२ । आह्वानं नैव जा नामि, नैर जानामि पूजनम् । त्रिसजन न जानामि, वयस परमेश्वर ॥३॥ ॥ इति शांति धारा मंत्रम् ॥ महामंत्र के या, अवकाश हो तो उसी प्रकार भगवान पर अखंड धारा करते हुए पाछपी हुई ज्यष्ठ जिनवर जयमाला पढ़ना चाहिये । 2 anारती.. प्राग्नी सुविशाल रन्न मारे निपाई, सुवर्ण मय परिपात्र इन्द्र हाथे विडूसाई ॥ प्रज्वलंति कपूर पुष्प माला करि सोहै, अन्धकार फोलंति भश्यि लोक मन गोहे । जे जिनवर भक्ति की आरती करती , से अज्ञान हणी करि केवल ज्ञान लहंती : भारतीय कनक चरणी पनि जिनेश्वरतणे भुवन ।
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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