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जब पूज्यवाद भट्टारक श्री १०८ श्री यशकीर्तिजी महाराज का चातुर्मास जहेर में था, श्री संघ नरसिंहपुरा केलरणो मण्डल के चन्दे के लिये श्रीमान जाति भूषण सेट चन्दुलाल करतूरचन्द शाह का आगमन हुश्रा था मन्दिरजी में हस्व-लिखित गुटकों से पूजन पढ़ाई जारही थी। पूजाएँ लिखित होने के कारण पठन-पाठन में कठिनाई होना एवं हस्त-लिखित प्राचीन गुदकों के जीर्ण-शीर्ण हो जाने के कारण श्रीमान् सेठ चन्दुलाल कस्तूरचन्द शाह ने कहा कि उक्त पूजाएँ छप जायं तो इनका पठन-पाठन सर्व सुलभ हो जाय एवं प्राचीन पूजन साहित्य की सुरक्षा भी हो जाय ।
पूज्यपाद भट्टारक यशकीर्तिजी महाराज तथा हमारी भी बहुत समय से अभिलाषा थी कि यह संस्कृत पूजन सातिय से की गाने पूर्व मनायने अपने द.नाध्ययन के समय में से समय बचाकर रचा है, संभहीत कर प्रकाशित करें ताकि श्रद्धालु भक्तगण भक्ति रस से परिपूर्ण इन रचनाओं से लाभ उठावें । एवं गुजरात
प्रांत की समाज की काफी मांग थी 1 इस लिये हमने खास तौर से पं० चन्दनलालजी जैन साहित्य रत्न | ऋषभदेव को भेजकर जहेर अहमदाबाद कलोल नरोड़ा श्रामोद् सूरत शास्त्र भंडारों एवं भ. यशकी सरस्वती ।
भवन ऋषभदेव से पूजाओं की प्रति लिपि करवाई । प्रस्तुत संग्रह के सभी पाठ सोलहवीं सत्र६वीं सदी के विद्वान भट्टारकों तथा ब्रह्मचारियों द्वारा रचित्त हैं। पुरानी हस्त लिखित प्रतियां बहुत अशुद्ध रूपमें प्राप्त हुई थो । प्रस्तुत पाठक संशोधनमें- श्रीमान विद्वर्य पं. पन तालजी पार्श्वनाथजी शास्त्री शोलापुर विद्यालंकार पं० इन्द्रलालजी शास्त्री जयपुर, पं. महेन्द्रकुमारजी महेश ऋषभदेव का सहयोग रहा है। साथ ही मेरे अनन्य सहयोगी पं० धन्दनलालजी साहित्य रत्न ऋषभदेव का सम्पादन तथा संशोधन में महत्वपूर्ण योग रहा है। एवं पंगुलजारीलाल चौधरी शास्त्री प्र. शिक्षण संस्था, उदयपुर ने प्रूफ संशोधन में अच्छा सहयोग दिया है । इसके । लिये उक्त सभी विद्वानों का अत्यन्त आभारी हूँ। श्रीमान् मान्यवराति भूषा श्रीमंत सेठ चंदुलाल कस्तूरचन्द शाह कलोल ने प्रतिलिपि कराई का व्यय प्रदानकर इस कार्य के लिये मुझे उत्साहित किया इसके लिये उनकामी
भारी हूँ। प्रस्तुत संग्रह से साधारण पदालिया व्यक्ति भी लाभ उठा सके इसके लिये पूजन विधान में