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बाहूता ये पुरा देवाः लब्ध भागायथाक्रम ते भषाभ्यचिंता मक्त्या सर्वेयांतु यथास्थितिम् ॥ ४ ॥
॥ लघु होम ( यज्ञ) विधान ॥ बेदी-घर के किसी उत्तम भाग में या मंडप के अग्रभाग में आठ हाथ लम्बी, पाठ हाथ चौड़ी, और एक हाथ ऊँची तीन कटनी घाली वेदी बनावे । इस वेदी के ऊपर पश्चिम की
ओर तीन कटनी की एक हाथ लम्बी एक हाथ चौड़ी और एक हाथ ऊँची एक छोटी बेदी वनाने । इस छोटी वेदीपर श्री जिनेन्द्र देवको प्रतिमा स्थापन करे एवं दाहिनी तरफ यक्ष तथा बाई ओर यक्षिणी विराजमान करे। वे कच्ची ईट तथा गारे से ही बनवानी चाहिये फिर उसे खड़िया आदि से पोत कर विविध चित्र धना कर रंग देना चाहिये ।
नोट-इस विधान में जिस दिशा में भगवान का का मुह हो वह पूर्व दिश मानी जाती है। तदनुसार अन्य दिशाएं भी समझ लेनी चाहिये । मंडप या धान संकीर्ण हो तो ४ हाथ की वेदी से ही काम चला लिया जाय कदाचित वेदी बनाने की असुविधा होतो उतनी ही मीन लीपकर उसपर रंग द्वारा लाइनें करके घेदी की कल्पना करलेना चाहिये । वेदी को चंदोग, चित्र, तोरण, वन्दनवा, पुष्पमाला आदि से सुसज्जित धनादेना चाहिये चवं चारों कोनोंपर कदली स्तंभ (केल के थम्भे ) इनुदंड भी लगादेना चाहिपे ।
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