SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ केतुः स्फुरत्केतु सहस्त्र विग्रहो, रिष्ट ग्रहाख्यो ररिमंडलादधः । बजेदरिष्टान विमान संस्थितं, जिनाभिषेके बसुदर्भ मादधे केतु दर्भः ॥ ॐ ईषन्नन तरैकयो जनमतं, धूत्रौध धूम्रविषम् ॥ यस्य स्पंदनमृद्ध गासित करें, राच्छादयेाकम् ॥ दर्शान्ते प्रतिपतिता वुदयनि, षण्मासि परमाखितम् ॥ रिष्टं सप्त धनुन्तनुं ग्रह महं, केतु ं च सम्यक यजे ॥ हे केतु गच्छ २ केतवे स्वाहा ॥ शेषं पूर्ववत् ॥ स्थानासन्दा प्रतिपत्ति योग्यान्, सद्भावमन्मान जलादिभिश्व जैनाभिषेके समचेसमेतान् नवग्रहान्शान्ति करान्यजामि ॥ || जलं गंधं चतं पुष्पं नैवेद्य दीपं धूपं फलं पुष्पांजलिं क्षिपेत् चीरार्णवो सुरंग तरंगगौरं कस्तूरि का मोद विकृष्ट तुगम् ॥ रोपनोदाय ददामिधीतं भक्त्या ग्रहेभ्यो वर वस्त्र मुख्य वस्त्रम् अथ क्षेत्र पालार्चनम् ॥ सद्य नाति सुगन्धेन, स्वच्छेन बहुतेनच ॥ स्वपनं क्षेत्रपालय्य, तैकेन प्रकरोम्यहम् || लाचनम् || १२२७॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy