________________
अस्मिन्पुण्यमहोत्सवेऽह. मचिरादाम त्रये यक्रमा ॥
दादत्ता मय माष शेष कलितं, पन्यादि युक्तं करू ॥ पाद्यार्घः ॥ ॐ दक्षिण पश्चिमायां दिशि धूमधूम्र सटा टोप भासुरोख्यपुष, अभिनवविशदरोदनानु कारायजनित समस्त जन कौतुकं, निपुणोप लषितं सूक्ष्म पुत्माक्ष वुध बुध युगं रक्षण रूढ़ बरट कलाप कुसुम सम देह दीप्ति संशयेत, नब जलद पटलं; सफल परिच्छिद समन्दितं, नैऋत्य देवमाहगनयामहे स्वाहा, शेषं पूर्ववत् ॥
ॐ लोक्य नाक्षाय, नमस्कृत्य जिनेशिने ॥
वरुणस्य हरिभागे, स्थापयेदर्भद्भुतम् । वरुण दर्भः ॥ ॐ पद्मिभन्याश्रित दंत दंति मकरा, रूढ़ भुजंगायुधं ॥ मुक्ताछि मभूषणं चवरुणं, काठां प्रतीच्याश्रित ॥ भार्या संयुतमाह्यायामि जगता, मीशस्य पूजा क्षणे ॥
प्रीतः स्वीकुरुतामसा वषिमया, संपायमर्यादिकम् ॥ ॐ पश्चिभायां दिशि संतत जलनि मज्जन जनित पांडर कपिल वर्ण, उदऽशुडान पुष्कर निर्गत शौकर सार विन्दु दन्तुरित कुंभ • पीट, कठोर केतकी विशद दंत किरणां कर तिरस्कृत कपोत मद मलिनमाव, जलरिमारूढ़', निर्मल मुक्ता फलोपचित्त तार हरि वृक्षः स्थलं, सजव नागराज पाशपात्त प्रारब्धं, शक दोर्मद शालि संपन्न', पल्पादि संयुतं वरुण देवं, समा बानयामहे । पाहा, हे वरूण आगच्छ २ वरुणाय स्वाहा ॥ शेषं पूर्ववत् ।।
ॐ मातरिश्व विदिमागे, विश्व विश्वं धरा प्रभो ॥ अभिषेक समारंसे, दर्भ गर्भ प्रकल्पये ।