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________________ मंत्रा चरात्निंगित वाग्मिरुन्चे, रत्ना चत पुष्पाणि जिनेन्द्र चंद्रं परया विभूत्या संस्नापयामि प्रवरासन स्वम् ।। १२ ।। ॥ अथ प्रतिमा स्थापनं ॥ यः पांडुकामलशिलागतमादि देव, संस्नापयन्सुर वराः सुर शैलमूनि ॥ कल्याण मी सुरहमतो संगमपुर पर उदय हिन्द ॥ इति प्रतिमा स्थापनम् ॥ ॐ श्वेतवर्ण स्फटिक मणि विनिर्मित सहस्त्र योजन प्रमाणं पंच कोश प्रमाण मुखं क्षीरो दधि जलपूर्ण पूर्वोत्तरस्यां दिशि कलशं स्थापयामि ॐॐ ह्रीं अनन्तमा अनन्त गुरु गर्वित नादं नंद नाम प्रथम कलशं स्थापयामि कलशेषु स्थापितेषु सोदकानि सपुष्यापि साक्षतानि सहिरण्यानि चिपामि स्वाहा ॐ पूर्व दक्षिणस्यां दिशि नील मणि विनिर्मित सहस्त्र योजन प्रभाग भद्र नाम द्वितीय कलशं स्थापयामि, पुष्पांजलि क्षिपेत् ॥ ॐ ह्रीं दक्षिण पार्श्वमायां दिशि पीत व विनिर्मित सहस्त्र योजन प्रमाणं जय नाम तृतीय कलशं स्वापयामि, शेषं पूर्व३त् ॥ २१० ।
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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