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________________ - - -- - २० - - RA अत्यु यम द्यतमह जिन पाद पीठं, प्रचाजयामिभव संभव वाप हारिः ॥ पीठ प्रक्षालनं ।। प्रत्यग्र तार तर मौक्तिक चूर्ण वर्णैः, श्रृंगार नाल मुखनिर्गत चार गंधैः ॥ शीतः सुगार्धगिरतीन नानै विजये स्नपनसार समारमेऽहं ॥ मलस्नपनं ॥ इंद्राग्नि दंश्वर नैऋतपाश पाणि, वापत्तरेण शशिमौलिफणींद्र चन्द्रम् ॥ आगत्य यूय मिह सानु चराः सचिन्हाः, स्व स्वं प्रतीच्छतु पनि जिनयाभिषेक ॥ दिग्पालर्चनम् ।। पुण्याह मसुम होति च ममल्नाांन, सर्व प्रहृष्ट मनसश्च भवंतु भव्याः ॥ पुण्यो दकेनभगवंत मनंत कान्ति, महन्त मुन्वन तनु परि वर्तयामि ।। पुष्पा क्षतोद कावतारणम् नाथ त्रिन्नोक महिताय दश प्रकार, धर्माम्बु वृष्टि परिषिक्त जग त्रयाय ॥ अर्धमहा गुणरल महार्ण नाय, तुम्यं ददामि कुसुमैविश दाक्षतैश्च ॥ पुष्पाक्षतावतारणं ।। जन्मो त्सादि समयेषु यदीय कीर्तिः, सेन्द्राः सुराः प्रमद भार नुताः स्तुवंनि तस्या ग्रतो जिनपतेः परया विशुध्या, पुष्पाञ्जलि मलय जाद्र मुपातिपदं ॥ ॥ पुष्पाञ्जलि श्री खंडा वतारणम् ॥ (अथ अई प्रतिमां नेतु गत्वा पूजां कन्या इदेस्तोत्र पठयमान मानीयते ) आगत्य देव्यैर्जननी प्रपूज्य, नीचा वि भूत्या नगराज भूनि ॥ मृगेन्द्र पीठे वर पाएड कायां, निवेश्य पूर्वाभिमुखं जिनेन्द्रम् ॥ १ ॥ क्षीरो: तोयैरमरोप भीतैः, प्रियंगुसञ्चंदन पद्म मिश्रीः ॥ आपूरिता नष्ट सहस्त्र संख्यान, प्रगृत्य सत्कांचन रन् कुमान् ॥ २ ॥ २०६ - - -
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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