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________________ सुरभिताखिल दिछभुख नंदन प्रभव चंदन सौरभहारिभिः । परिमलो कट कुकुम चंदनैश्चरणयोगुरू पूजनमारभे ३ घन्दनम् । विगत खंडमधवल प्रभैः कमलबीजप्रपितामतः । अति नरिव पुण्यलवैभजे, पुरूवरांघ्रि सरोजयुगं शुभम् ॥ अक्षतं ।। विकसनोत्तमवासविलमितरविकृत भ्रमरालि निसेवितः शुचितरैः कुसुमैरहमादरात्-परिचरामि पदे परमं गुरोः ॥ पुष्पम् ।। पुस्ट मंडन भाजनगैः शि, श्वरूपतिपूर सुपरितः । ____ अमृतजैरिज पिंड चयजे, बुनियर क्रम पंकजमुत्तमम् ।, नैवेद्य ॥ मदित सुप्रभयोत्प्रभतारका-बलिकयेष सुदीपक मालया ।। अरूण गगनरवांशुसमुज्वलं, परिचरेभ्युज पाद युगं गुरोः । दीपन् । अविरलैप धूरकशानुज, गगनजैर्वर धूप समुच्चयैः । अगुरूजैहरिचंदन गधिमिर्गतिपते पदवारिजमर्चये ॥ धूपम् ॥ नयन भृग महोत्सव कारिभिः परिषतैः सुधयैव विनिर्मितः मधुर चित्ररसैविविधैफलैः कृतमनो विनयं जयमर्चये ॥ फलम् ॥ विद्या सागर पार दर्शन बराः; काष्ठान्वयोद्योतिनः । स्वानंदं परमंगताः कृततपो-ध्यानाः कृषाम्भोधनाः ॥ ॥१५५॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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