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________________ | १२६ ॥ श्लोक - नन्दीश्वर (पराशास्तां जनाद्रिस्थ सुवेन्मसु । स्थितान्सर्वान् जिन्नाधीशान, पूर्णाः पूजयाम्यहं ॥ १० ॥ * उत्तर दिशि पूजा ( वसततिलका) ॥ अर्थ्यम् ॥ तस्योत्तरंजन नगादि शिखीन्दु संख्या, शैलस्थ चेत्य भवनानि मनोहराणि ॥ कार्तिक फाल्गुणोरु, शुक्लाष्टमी प्रभृति सविसाष्टकान्तम् ।। संस्था ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपे उतर दिशि संस्थितांजन गिवादि त्रयोदशपत्र कृत्रिम चैत्पालय स्थापनार्थं पुष्पांजलि चिपेत् " (विद्युन्माला छन्द) निर्जर गंगा वरवर तोयें, र्गंध विमिश्रः कलिमल हान्यैः । श्री तदुदीच्यां जन मुख, ग्लौमित शैला लय जिनम || १ | जलम् केशर माला सुरभी रसोधें, श्चन्दन पंकै मधुकर रागैः ॥ श्रीतदु ॥ चन्दनम् ॥ तंदुल पु'हिमकर रोचि मौक्तिक तुल्यैः परिमल सारैः ॥ श्रीदु• ॥ श्रक्षतम् ॥ चम्पकमाला शतदल कुन्दै चेतक जाती कुवलय सारै ॥ श्रीतदु० " पुष्पं पायस शापोदन नत्र सर्पे, मोदक हयैर्ममिव मिष्ठैः । श्रीतदुः ॥ नैवेद्यम् || ॥२२६॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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