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श्लोक - नन्दीश्वर (पराशास्तां जनाद्रिस्थ सुवेन्मसु ।
स्थितान्सर्वान् जिन्नाधीशान, पूर्णाः पूजयाम्यहं ॥ १० ॥
* उत्तर दिशि पूजा
( वसततिलका)
॥ अर्थ्यम् ॥
तस्योत्तरंजन नगादि शिखीन्दु संख्या, शैलस्थ चेत्य भवनानि मनोहराणि ॥ कार्तिक फाल्गुणोरु, शुक्लाष्टमी प्रभृति सविसाष्टकान्तम् ।।
संस्था
ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपे उतर दिशि संस्थितांजन गिवादि त्रयोदशपत्र कृत्रिम चैत्पालय स्थापनार्थं पुष्पांजलि चिपेत् "
(विद्युन्माला छन्द)
निर्जर गंगा वरवर तोयें, र्गंध विमिश्रः कलिमल हान्यैः ।
श्री तदुदीच्यां जन मुख, ग्लौमित शैला लय जिनम || १ | जलम् केशर माला सुरभी रसोधें, श्चन्दन पंकै मधुकर रागैः ॥ श्रीतदु ॥ चन्दनम् ॥ तंदुल पु'हिमकर रोचि मौक्तिक तुल्यैः परिमल सारैः ॥ श्रीदु• ॥ श्रक्षतम् ॥ चम्पकमाला शतदल कुन्दै चेतक जाती कुवलय सारै ॥ श्रीतदु० " पुष्पं पायस शापोदन नत्र सर्पे, मोदक हयैर्ममिव मिष्ठैः । श्रीतदुः ॥ नैवेद्यम् ||
॥२२६॥