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नेखन कला में भी बड़े प्रवीण थे और बड़े सुपर अक्षर लिखते थे। साथ ही आप यंत्र मंत्र वैधक ज्योतिप आदि में भी सिद्ध हस्त हो गये थे। आपके इन गुणों पर मुग्ध होकर विक्रम सं० १६०४ मार्ग शीर्ष शु. को भ० क्षेमकीर्तिजी महाराज ने अपने पट्टपर भ. यशकीर्ति के नाम से स्थापित किये थे
आपने भ. पदस्थ ग्रहण करने के बाद सर्व प्रथम गुजरात प्रान्त में भ्रमण कर अच्छा प्रभाव स्थापित किया उसके बाद १९८२ में अपने गुरु म. क्षेमकीर्तिजी के स्मारक (छतरी) की प्रतिष्ठा कराई जिसमें सभी प्रान्तों की नरसिंहपग समाज एकत्रित हुइ थी। और सब पंचोंने भ० यशकीर्ति महाराज को पछेबड़ी समर्पित की धीरे धीरे आपकी त्याग भावना बढ़ती गई । २५ वर्षो से चातुर्मास में एक ही पत्र का पाहार करते हैं। और १५ वर्षों से घृत का त्याग कर दिया है। श्राप भट्टारक पदस्थ पर होते हुए भी म्याना पालकी गद्दी तकिये छड़ी चवर पशु वाहन की सवारी आदि का सर्व था त्याग कर दिया है। आपको शान्त च गंभीर द्रा और आपका प्रभावक व्यक्तित्व प्रत्येक व्यक्ति के हृदय पर अपनी गहरी छाप डालता है। आपका उपदेश बड़ा हो प्रभावकारी होता है । साथ ही संगीत और सभी प्रकार के वाद्य बजाने में भी आप बड़े निपुण हैं आपने अपने जीवन में इतनी प्रतिष्टाए की हैं जितनी पहले के किसी भी भट्टारक ने नहीं की होगी। समाज में अनेकों स्थानों पर आपसी वैमनस्य थे उनको निपटाये । वि. सं. १६६५ में ऋषभदेव में चौ मंजिला भ० यशकीति भवन के नाम से भवन बनाया है जिसमें श्रौषधालय, चैत्यालय और सरस्वती भवन की स्थापना की है । सरस्वती भवन में हस्त लिखित व मुद्रित करोब ३००० प्रथों का संग्रह है। कई शास्त्र १३ वीं शताब्दी के लिखे हुए तक हैं। यशकीनि यम का उद्धघाटन समारोह बड़ी भूम धाम से किया गया था उस अवसर पर माई तक इन्द्रवज विधान कराया गस था । पूज्य श्रा. शांति सागरजी म.हाणी व अनेक स्यागो मुनि और श्रावक गण एकत्रित हुए थे। सरे गांव की आम जनता को प्रीतिभोज दिया था देवस्थान विभाग ने केशरियाजी मंदिर से तमाम लवाजमा उपकरण श्रादि देकर पर्ण सहयोग दिया था। आपने शिक्षा प्रचार के क्षेत्र में भी बड़े ही प्रसंशनीय कार्य किये हैं । वि.म सं००७