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________________ १६७y मार्गशीर्ष शुक्ला ८ शुक्रवार को दिन में २ बजे प्रतापगढ़ में आपका स्वर्गवास हुआ। अपनी मृत्यु के दो घन्टे पूर्व पंचों की समक्षता में प्यारेलाल को अपने पार भ० यशक ति के नाम से स्थापित किये थे। आपका अन्तिम संस्करण घड़े समारोह पूर्वक किया गया था। करीव १०८०० दस हजार जनता ने शव यात्रा में भाग लिया था। तालाब के रास्ते पर जहां आपका अन्तिम संस्कार किया गया था श्रापका स्मारक बना हुअा है । आपने ऋषभदेव ( केशरियाजी) में एक मकान खरदा था भाज उसी स्थान पर म0 यशकीर्ति भवन बना हुआ है। अापके निम्न सुयोग्य शिष्य थे। १ पं० किसनलाल, २ पं० चिमनलान, ३६० मन्नानास, ४ पं० होरालाल, ५० प्यारेलाल, ६ पं. रामचन्द्र, पं. किशनलाल - * भ० यशकीर्ति - भ० यशकीतिजी महाराज का जन्म विक्रम सं० १९५१ में ठाकरडा (वागड़) निगमी अष्ठी उदयचन्द की पत्नी सुन्दर बाई के उदर से हुआ था। श्राप , नरसिंहपुरा जाति के पटनर (खड़ नर । नायक गोत्री थे। आपके ५ भाइयों में से ३ बड़े और एक थापसे छोटा या आपके 'काका पं० किशनलाल जो कि भाक्षेम कीर्तिजी महाराज के शिष्य थे अंधे हो गये थे अतः उन्होंने अपने भाई उदयचन्द मे एक पक्ष की मांग की 1 उदयचन्द ने कहा आप कहो उसको आपकी सेवा के लिये रखई । तब उन्होंने प्यारेलाल को मांग की मो सं० १६५७ में प्यारेलाल को भेंट कर दिया। प्यारेलाज बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और प्रतिभाशाली थे। अापका अध्ययन भ० तेमकीतिजी महाराज की संरक्षकता में ही हुआ था पाप १५ वर्ष की उम्र में ही शास्त्र सना में भाषण और भणमोपदेश द्वारा जनता को मुग्ध कर देते थे। प्राय 14
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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