SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ द्वितीय जयमाला ॥ आर्या-अहम जिण थुण महं दलियं जिण मरण माणादि । समरे सरसति पायं चये चड्य किठिमा किट्टीः ॥ पंच मेरूह अस्सी भवनं. मयदंत वीस आधार । भवियण भाव धरि । रत्नालंकृत हेम जिनालय जिय घरे, पूजू अष्ट प्रकार कपूरे दीपकरे॥१॥ बीस भुवन कुल पर्वत ही, अम्सी गिरी वचार ॥ भवि० । २ ॥ सिचरसु विजयारथ ही, कुरुद्रमेहश होई ॥ भवि० ॥ ३ ॥ इक्ष्वाकार कुंडल गिरिए, मावुपोचर च्यार च्यार ॥ भवि० ॥ रुचिके गिरि चऊ. जिन भवना, नन्दीश्वर बावन्न । भविः ॥ मध्य लोक ए भवन कह्या, चउसे अट्टावन्न ॥ मवि० ॥ लाख चौंसठ असुर तणाए, चौरासी नागेन्द्र ॥ भनि ॥ सुप्रण लाख छिटोंत्तर ए छिहोंत्तर दीप कुमार । भवि० ॥ लाख लिहोंनर नीत कह्या, उदवि छहोत्तर लाख ॥ भवि० ॥ विद्य कुमर लाख छिहोंत्तर ८, दिग्तुर छहांत्तर लाख ॥ भवि० । १० ।। दीप कुंवर लाख लिहोत्तर ए छन्युवात कुमार । भवि० ॥ ११ ॥ तात कोड़ी लाख छिहोचर ए अकृत्रिम अागार ॥ भवि० ॥ १२ ॥ 85)
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy