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________________ . . अपूर्व चन्द्र केसरैहिमांशु पाद शीतल, महामनोन चन्दनैः द्विरेकराजिनन्दनः । सुपंचने० ॥ चन्दमन् ॥ अखंड कोटि तंदुलैरनेक शालि संमवैः ___ हिमांशु पाद पाण्डरी सुवर्ण पात्ररोपितैः । सुपंच. ।। अक्षतम् ॥ सरोज जाती पम्पकैः प्रफुल्ल मल्लि मालया। ___ बपाप्रश्न शासया भ्रमनिरेफ मालया ॥ सुपंच. ॥ पुष्पम् ।। नवीन भव्य पायसान सशरसोनिः विचित्रशाक नन्य गव्य सूप भक्त सुदरैः । सुएंप. ॥ नैवेधम् ।। मसार माजन स्थित रनद्यरत्न दीपकैः स्फुरन्म युख राखितः विपार्थतामसोस्करैः । मु पंचमे. ॥ दीपम् ॥ सुपर्व दारु यक्षप काकड समवेः प्रधूपधूम संचयरनंत लुब्ध षट्पदैः ।। म पंच. ॥ धृपम् ॥ सदा फलान माधवी बकिंग पूग दारिमै । सुनानिकर बीजपूर कर्कटी करित्यको ॥ सुत्र. ॥ फलम् ॥ अ'भो गंधै रचतैः पुष्प हव्यै, दोपैथुपै. श्रीफलैश्चन्द्र कीर्तिम् ॥ वाहण्याशा संस्थिता जैन बिम्बान् पंचानां श्री मंइराणां यजेहं । अर्घम् ॥ E ॥ ६॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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