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________________ ६१ ॥ सुदर्शनं विजया बल मेरू, मन्दिर विद्युन्माली महील पूर्वदिशि विंशति आगारं, अमर पर अर्चित मनहारं यद्रसाल नन्दन वन चंगं, सौमन पांडुक चार अभंग प्रति वन च उत्तम जिन गेहूं, भवियमा बन्दो पूजो तेई अष्टोत्तर शत प्रतिमा चंगं प्रति चैत्ये वन्दों मन रंग पन्च शतक बर धनुष उर्तगं रत्न विनिर्मित तनु शुभरंगं सात कुम्भ निर्मित जिन गेहं रत्नालंकृत तोरण ते रत्न जपनि धूप सुकुभं, केतु पंक्ति सुर निर्मित शोभं हेमालंकृत वनसदार, जबिस रत्न मुक्ताफल सारं ताल कसल झन्लरिय फेरी, दुदुमि ढोल निशानन मेरी पूजा भ्रष्ट विधि सुखकार मीव नाद नृत रचित उदार वासवेश नित चर्चित घरणं, नाम नरेश्वर गत पद शरणम् जय जय जिनवर जगदाधार ं जनमन मोहन मांधता श्री ही मिं ॥ २ ॥ WING ॥ ॥ ॥ पूर्व दि० ॥ पूर्व दि० ।। पूर्व दिं० ॥ ॥ ॥ ॥ || पूर्व दि० पूर्व दि० पूर्व दि • पदि पूर्व दि० ॥ पूर्व दि० ॥ ३ ॥ । ४ ॥ ॥ ॥ ॥ पूर्व हि ।। ॥ || ॥ पूर्व दि० ॥ ५ ॥ ६ ॥ ७ ॥ = ॥ & ध १० ॥ ११ ॥ बचाः - श्री पूर्व दिगेशं, जिनपर ईर्श, संभजामि भव भय हरणम् ॥ बारव, सुनि जन शरणं, कर जोड़ी गोविन्द कहियम् ॥ ब्रेन २७ मम १२ ।। १३ ॥ ६. श
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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