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सुदर्शनं विजया बल मेरू, मन्दिर विद्युन्माली महील पूर्वदिशि विंशति आगारं, अमर पर अर्चित मनहारं यद्रसाल नन्दन वन चंगं, सौमन पांडुक चार अभंग प्रति वन च उत्तम जिन गेहूं, भवियमा बन्दो पूजो तेई अष्टोत्तर शत प्रतिमा चंगं प्रति चैत्ये वन्दों मन रंग पन्च शतक बर धनुष उर्तगं रत्न विनिर्मित तनु शुभरंगं सात कुम्भ निर्मित जिन गेहं रत्नालंकृत तोरण ते रत्न जपनि धूप सुकुभं, केतु पंक्ति सुर निर्मित शोभं हेमालंकृत वनसदार, जबिस रत्न मुक्ताफल सारं ताल कसल झन्लरिय फेरी, दुदुमि ढोल निशानन मेरी पूजा भ्रष्ट विधि सुखकार मीव नाद नृत रचित उदार वासवेश नित चर्चित घरणं, नाम नरेश्वर गत पद शरणम् जय जय जिनवर जगदाधार ं जनमन मोहन मांधता
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बचाः - श्री पूर्व दिगेशं, जिनपर ईर्श, संभजामि भव भय हरणम् ॥ बारव, सुनि जन शरणं, कर जोड़ी गोविन्द कहियम् ॥
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