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________________ जैन वाक्य सुमंजुलैः शशिभोज्न लैवर तदुलैः हेम पात्र समाश्रित कज वासिताधिवासितैः ॥ पंचमे... अक्षतम् ।। ३ ।। पारिजात महोत्फ्लैः कनकोत्पलैगति कोमलैः । सिंदुवार सुचम्पकैः स्फुट नीपरिव दिव्यकैः । पंचमे. ॥ पुष्पम् ॥ ४ ॥ हेम भाजन संस्थितै रधिकाश्रितेत पाचितः । दिव्य पोली नवोदनः सुखनोदन गभिमोदनः ॥ पंचमे, ।। नैवेद्यम् । ५ ।। तामसासुर नाशकै, रविनाशकै परि भासकैः योतिताऽखिल दिलसुखै मणि दीपकै गुणदीपकै ॥ पंचमे, ॥ दीपम् ॥ ६ ॥ मेनका गुरू संभ गुरू धूप के बड्ड धृषकै गंध लुब्ध शिली मुखैर्गत दिड्मुखेहत कन्मपै. ॥ पंचमे. ॥ धूपम् ॥ ७ ॥ नासिकेर सदाफलै बहुधामले बन सत्फलैः ___ बीजपूर सु जभल रति पेशल बहु कोमलैः ।। पंचमे. ॥ फलम् || - ॥ पाथो गंधाक्षतीधैः शतदल निचयः सार नैवेद्य दीप धूपैरामोदयुक्तः रुचिर तरू फले दर्भ दर्शवितानेः । मेरूना पूर्व भागे जिनवर निलपान् विंशतीत्येव संख्यान् नवा स्तुत्वा त्रिसंध्यं सुश्मिल मनसा संबजे चन्द्रकीर्तिः ।। अय॑म् ।।६।। - . GET . . .
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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