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________________ ▼ 1 "getes" के विज्ञ सम्पादक फडकुले महोदय में अपनी पाण्डित्य-पूर्ण भूमिका में लिखा है कि उल्लिखित प्रशस्तियों से कविवर अर्हदास पण्डिताचार्य माशाभर मी के समकालीन निर्विवाद सिद्ध होते हैं । किन्तु कमसे कम मैं आपको इस समय निर्णायक सरणी से सहमत हो आपकी निर्विवादिता स्वीकार करने में असमर्थ हूं। क्योंकि प्रशस्तियों से यह नहीं सिद्ध होता कि आशाधर जी की साक्षात्कृति भईदास जी को थी कि नहीं। 'सूति' और 'उक्ति' की अधिकता से यह अनुमान करना कि साक्षात् आशाधर सूरि से अर्हदास जी ने उपदेश ग्रहण कर उन्हें गुरु मान रक्खा था यह प्रामाणिक नहीं प्रतीत होता। क्योंकि 'सक्ति' और 'उक्ति का अर्थ रचना-बद्ध ग्रन्थ- सन्दर्भ का भी होसकता है। अस्तु मैं आपकी और अखण्डनीय बातों का खण्डन न कर सिर्फ आपकी निर्विवादिता से सहमत नहीं होता हूँ । प्रचुर पाय के परिपाक से ही प्रकृत कवि कहलाने की कीर्ति आदमी प्राप्त कर सकता है। कवियों के कसने के लिये बया ही अलौकिक निम्नलिखित कसौटी है: "यः केवलकवयः कीराः स्युः केवलं धीराः । वीराः परिवतकवयस्तानवमन्ता तु केवलं गवयः !! “शीला त्रिज्जामारुलामोरिकाद्या: काव्यं कर्तु सन्ति विज्ञाः स्त्रियोऽपि । विद्यां वेत्तुं वादिनो निर्विजेतुं विश्वं वक्तुं यः प्रवीणः स वन्द्यः" || [ उद्भट ० ] काव्य-क प्राकन पद्धति का अवलम्बन अस्तु उल्लिखित कसौटी पर कसे जाकर हमारे प्रस्तुत कविवर अर्हदासजी ने अपने काव्य-कलेवर की कमनीय कान्ति में किञ्चिन्मात्र भी कलङ्क नहीं लगने दिया है। आपने - फलित. कल्पना- कुटीर में कमलासन लगाकर अपनी स्वर्णमयी अमर लेखनी से श्रीमुनिसुव्रत तीर्थङ्कर के चारु चरित्र का चित्रण किया है। कर ही चरित्र नायक के नामानुसार इस काव्य का भी नाम-निर्देश किया है। आपका यह सारा काव्य माधुर्य तथा प्रसादगुण से ओत-प्रोत हैं। प्रत्येक श्लोक में अलङ्कार के पुट देने से इसकी शोभा और भी कई गुनी अधिक बढ़ गयी है। आपके इस काव्यकानन में विचरण करने से कहीं माधुर्य- मालती की मीठी २ सुगन्ध से सने हुए प्रसादपवन का हलका झोंका खाकर चित्त आप्यायित हो जाता है तो कहीं अन्त में बेराग्य की विरह-बिनादिनी वीणा का विहाग सुन जड़ीभूत जीव जगज़ाल से छुटकारा पाकर मुक्ति धाटिका की विशुद्ध सरणी का अवलम्बन करने के लिये आकुल हो उठता है। इस काव्य कुंज के सहृदय शैलानी को सदा शृंगार, हास्य, करण तथा बैराज्य स
SR No.090442
Book TitleMunisuvrat Kavya
Original Sutra AuthorArhaddas
AuthorBhujbal Shastri, Harnath Dvivedi
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1926
Total Pages231
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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