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________________ J. || लोकप्रकाशे प्रथमः सर्गः ॥ ( ६५ ) एसघळा भरेला प्याला ( चार ) दिशारूपी कन्याओंने क्रीडा करवाना [रमदाना] चार दाबडा के जेना पर अनुक्रमे ढाळ पडतुं शिखर सहित सरसर राशिरूप ढाकणुं छे तैदा) देखाय ले || १६७॥ तेषां छेल्ली वखते अनवस्थित प्यालो ज्यां खाली थयो छे ते दीपसमुद्र जेवडो प्रथम अनवस्थित प्यालो भराइ रहेलो छे, अने शेष है प्याला तो प्रथम का प्रमाणे लाख लाख योजना विस्तार बोळा . ॥ १५८ ॥ ( हवे सर्व सरसव दाणाओनी व्यवस्था करे छे.) अथैश्चतुरः पहचान, सावकाशे स्थले क्वचित् । उद्यम्य तत्सर्वपाणां निचयं रचयेद्विया ॥ १५९ ॥ ततश्च जंबूदीपादि -हीपवार्धिषु सर्षपान् । उच्चित्य पूर्वनिक्षिप्तांस्तत्रैव निचये क्षिपेत् ॥ १६० ॥ एकसर्षपरूपेण, न्यूनोऽयं निचयोऽखिलः । भवेदुत्कृष्टसंख्यात - मानमित्युदितं जिनैः || १६१ ॥ एतदुत्कृष्टसंख्यात - मेकरूपेण संयुतम् । भवेत्परीताऽसंख्यातं जघन्यमिति तद्विदः || १६२ | ज्येष्ठात्परीचा संख्याता - दर्वाग् जघन्यतः परम् । मध्यं परोत्ताऽसंख्यातं, भवेदिति जिनैः स्मृतम् ॥ १६३ ॥ जघन्ययुक्ताऽसंख्यात-मेकरूपविवर्जितम् । भवेत्परीताऽसंख्यात मुत्कृष्टमिति तद्विदः ॥ १६४ ॥ जघन्ययुक्ताऽसंख्य प्रकारश्चायम् - अर्थ- हये ए चार यात्राओने कोइक मोटी जन्यात्राळा स्थळमां ते खालीकरीने बुद्धिवडे ते सरसवोनो एक मोटो ढगली फल्पीये ( रचीये ) ॥ १५९ ॥ अने त्याबाद जंबूद्वीपादि द्वीपसमुदोषां प्रथम नाखेळा सरसवो एकटा करीने तेज - कानाखीये ॥ १६० ॥ परीते करतां जेटला सरसव थया नेपांथी मरसत्र ओछो करता ते ढगलाना जेटला सरसव थाप तेटलं उत्कृष्टसंख्यातनुं ममाण १ ए रोले वारंवार भरी खाली करतां महाशलाकामां जेटका सरसव तेली बार प्रतिशलाका खाली थयां अने महाशना सरसवनी वर्ग करीप तेटली बार शलाका प्यालो खाली भयो, अनं महाशरमा लगन धन करोये तेरली बार अनबस्थित प्यालो खाली थयो, अने पणे व्या ला जेटली बार खाली करना पड़या तेथी एकबार अधिक भरवा पहया छे. जेमके महाशलाका मां सरमय है तो प्रतिशलाका ४ वार, शलाको १६ मार ने अनवस्थित ६८ धार खाली याय.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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