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________________ ३०) ॥ श्रीलोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २३८) (०.४७) कोइ देव पूर्वना स्नेहवाळा त्रीजीनरकना नारकीनी वेदना शमावाने अगर पूर्वना वैरी त्रीजीनरकना नारकीनी वेदना वधारवाने वालुकाप्रभा नामनी त्रीजी नरके जाय एटले भवन पति सुधीनी स्पर्शना पर्ने लगजनी अंदर गणा गहले, जेथी तेनीनी चेना वालुकाप्रभासुधी वे राजलोक होवाथी ते बेराजनी स्पर्शना वधारे गणतां पूर्वनी छ अने आबे मलीने अनेक जीवोनो अपेक्षाए आवराजनी स्पर्शना मिश्रदृष्टिगुणस्थानवाळानी जाणवी - अथवा त्रीजीते विचारतां पण अठराजनी स्पर्शना घटेछे, मिश्रदृष्टिवाळी सहसावलोकवासी कोइ देव पूर्वोक्तकारणवशात् त्रीजी पृथ्वीये जाय तो सातराजनी स्पर्शना थायले अने तेज मिश्रदृष्टिवाळा सहस्रार कल्पवासी देवने अच्युतकपवासी देव स्नेह अच्युतदेवलोके लड़जाय त्यारे ते एकराज बधे एटले आठ राज स्पर्शना घटेछे, एजप्रमाणे अविरतसभ्यओिनी पण आठ राजनी स्पर्शना विचारी, अविरतसम्यदृष्टिजीव सभ्यवत्वसहित परभवर्मा जता के परभवधी आवता अनुत्तर विमानसुधीनी उत्कृष्ट सात राजनीज स्पर्शना पायेछे तेथी अधिक स्पर्शना होती नधी माटे उपर काममाणेन आठराजनी स्पर्शना जाणवी. कोइपण वीजा प्रकारे घटी सकती थी. बीजा आचार्यों अविस्तसम्यग्दृष्टिओने उत्कर्षयी नवराजनी स्थर्शना पण थाय तेम बतावे के, तेनो विचार आ प्रमाणे- क्षायिकसम्यग्दृष्टि त्रीजी नरकमां पण जायछे एटलेके सम्यक्त्वसहित अनुत्तर विमानमां जना अगर त्यांथी मनुष्यभवमां आतां सातराजनी स्पर्शना थाय अने त्रीजी नरकमां सम्यक्त्वसहित जता अगर त्यांथी आवता बे राजनी स्पर्शना थाथ एममाणे नवराजनी स्पर्शना पण घटीशकेछे, वली श्री भगवती सूत्रना अभिप्रायप्रमाणे सम्यक्त्वसहित छठी नारकीसुधी पण जइश के छे तेथी अविरतसम्यन्दृष्टिवालाजीवने बार राजलोकनी स्पर्शना पण संभये छे. ते आप्रमाणे - सम्यक्त्रसहित अनुत्तर विमानमां जता अगर त्यांथी मनुष्यभवमां आवता सातराजनी स्पर्शना, तथा सम्यवत्वमाप्त कर्या पहेला बांधयुचे नरकायु जेणे तेव मनुष्य तिचपैकीनो कोड़ पण अविरतसम्यग्दृष्टि जोव क्षायोपशमिकसम्यक्त्वसहित सिद्धान्तकारना अभिप्राये तमः प्रभानामनी छुट्टी पृथ्वीमां पण नारकीपणे उत्पन्नधाय छे अगर छट्टो नारकीमांथी क्षायोपशमिक सम्यक्त्वसहित मनुष्यगतियां उत्पन्नथाय छे एटले अधो छट्टी नरकमा जता अगर त्यांथी अहीं मनुष्यमां आवता पांचराजनी स्पर्शना थाय तेथी अविरतसम्यग्दृष्टिजीवने बारराज स्पर्शना पण घटीश केले, वली अच्युतेन्द्र थयेल सीतानो जीव चोथी कमभाकरकपृथ्वीमां नारकपणे उत्पन्न थयेल
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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