________________
२६९) ॥ श्रीलोकमकाशे तृतीयः सर्गः ॥ [सा. १९० (४१३) जघन्यथी जाणे ।। ८८८ ॥ अने उत्कृष्टथी तो सर्व बादर अने सर्व सूक्ष्मद्रव्योने विशेष आकारथी (विशेष धर्मयुक्त) जाणे, कारणके एने निश्चयथी ज्ञानपणु कहेलं छ. ॥ ८८९ ॥ हवे अवधिज्ञानी उपयोग बडे ( उपयोग मूके तो ज अ० ज्ञा होय माटे उपयोगथी ) क्षेत्रथी जघन्यपणे अंगुलनो असंख्यातमो भाग जाणे ।। ८९० ॥ अहिं विशेष ए के के-त्रण समय आहारक ( त्रण समय आहार करता थया के जेने ) एवा सूक्ष्मवनस्पति जीवनी जेटली जघन्य अवगाहना छ लेटलु अवधिनाननु जघा क्षेत्र है. ॥८९१॥ ए प्रमाणे श्री नन्दीमत्र विगेरेमां कईं छे. अने श्रीनन्दीसूत्रनीवृत्तिमा कामु छ के. १००० योजन प्रमाण कायावालो जे मत्स्य मरण पामीने पोतानाज शरीरना कोइ एक भागमा सूक्ष्म वनस्पति पणे उपजे तेज जीव अहिं सूक्ष्मपणावडे ग्रहण करवो ॥८९२॥ ते
(महाकापो) मत्स्य (पोताना आत्ममदेशोनी) दीर्घताने प्रथम समये सङ्कोची मतर । . करे, ते मनर अंगुलना असंख्यातमा भाग प्रमाण जाडे अने लवाइमां पण पोताना शरीर
नी पहोळाइना प्रमाणवाल, (होळाइथो पण स्वशरीर प्रमाणज ) करे बळी घीजे समये ने प्रतरने षण सङ्कोची आत्म सामथ्र्यवडे ते महाकायी मत्स्य (स्वप्रदेशोनी) सूची करे (ते सूचि) अंगुलना असंख्यातमा भागनी विष्कम्भ प्रमाणवाळी (होजीने जाही) बताची छे, अने पोताना शरीरना विस्तार जेटली दीर्घ (म्बदेहनी प्होलाइ जेटली दीर्य) बनावे छे, एवी रीते बनावेली सूचीने त्रीजे समये सङ्कोची ॥८९.८॥ ( ने मत्स्य ) पोताना शरीरना एक भागमा पनकपणे सक्ष्म वनस्पतिपणे) उत्पन थाय ते सूक्ष्म परिणामवाळो जाणवो, ने पनकनी उत्पन थया बाद त्रण समयमां जेटली अवगाहना थाय ।१५।। तेटलुं क्षेत्र अवधिज्ञानना आलम्बन पदार्थोनु (अवविज्ञानना विषयभूत पदार्थोनु) भाजनरूप जघन्यक्षेत्र जाणवू, आ जार० क्षेत्र मुनिग
त्यारयाद भाषा ( औ• ग्रा० अपे० पांचमी ) घर्गणा कहेली छ, भापानी अपेक्षाये तैजस स्थूल छे, अने तैजसमी अपेक्षाये भाषा सक्षम छे. माटे तेज वर्गणा क्रम घटी शके छे. अने अप्राण न्यो तैनसनी नशीक होय ते गुरुलधु अने भाषानी नीक होय ने अगुरु लघु जाणया.